Book Title: Dwatrinshada Dwatrinshika Prakran Part 5
Author(s): Yashovijay Upadhyay, Yashovijay of Jayaghoshsuri
Publisher: Andheri Jain Sangh
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द्वात्रिंशिका
तत्त्वतः साम्परायिककर्मबन्धस्याश्रवता
अनाश्रवयोगमीमांसा
बौद्धदर्शने सप्तधा आश्रवोच्छेदः . ગોત્રયોગી અને નિષ્પન્નયોગી
યોગાધિકારી નથી
पश्यकस्योद्देशाऽभावः
परमहंसस्य विधि - निषेधातिक्रान्तता
કુલયોગી અને પ્રવૃત્તચક્રયોગી
યોગાધિકારી બને
योगिनां चातुर्विध्यम् . કુલયોગીનું લક્ષણ कल्पान्तरानुसरणबीजविद्योतनम् .
कुलयोगित्रैविध्यम्. પ્રવૃત્તચક્રયોગીના લક્ષણ
अष्टविधप्रज्ञागुणनिरूपणम् . उत्तमश्रुत-साक्षात्कारयोरधिकारी
યોગપ્રયોગાધિકારીનું નિરૂપણ वञ्चकयोगव्याख्या
योगदृष्टि-विंशिकाविरोधपरिहारः. ઈચ્છાયમ-પ્રવૃત્તિયમ વિચારણા अखण्डार्थग्राहकनयाभिप्रायद्योतनम् . संविग्नपाक्षिकस्य प्रवृत्तचक्रयोगित्वम् प्रवृत्तियमोपायोपदर्शनम्
સ્થિર યમને પામીએ
उपधेयसाङ्कर्येऽपि उपाध्योरसाङ्कर्यम् . સિદ્ધિયમને માણીએ .
इच्छादियमफलविचारः.
સદ્યોગાવંચક યોગને નિહાળીએ .
सत्सङ्गफलोपदर्शनम्
ક્રિયાઅવંચકયોગને સમજીએ क्रियाऽवञ्चकयोगस्य नीचैर्गोत्रनाशकत्वविमर्शः,
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• વિષયમાર્ગદર્શિકા •
१३०१ | सप्तविधसमाधिविमर्शः . १३०२ |इसावंय योगने भाभी १३०३ | दशविधसमाधिप्रतिपादनम् . योगविवेकविज्ञानाद् मोक्षलाभः . ૧૩૦૩ | ચિંતનનો ચંદરવો .
. १३०४ वांयो, वियारी अने वागोजो. १३०५
२०. योगावतार द्वात्रिंशिका संशय-विपर्ययादिराहित्येन भाव्यबोध ૧૩૦૫ | સંપ્રજ્ઞાત યોગનો પરિચય . १३०६ | पारमार्थिकसमाधिदर्शनम् ૧૩૦૬ | સંપ્રજ્ઞાત યોગના ચાર પ્રકાર . . १३०७ धानुष्कोदाहरणम् .
. १३०८ सवितर्ड निर्वितर्ड
૧૩૦૮
. १३०९
संप्रज्ञातयोगनी खोज.... सवितर्कसमाधौ नानामतोपदर्शनम्. १३१० अश्रुतादेः योगजधर्मबलेनोपलब्धिः ૧૩૧૦ | સવિચાર-નિર્વિચાર સમાધિ
१३११ | अन्तःकरणतत्त्वभावनम् .. . १३१२ सानं संप्रज्ञात समाधिनी पर
૧૩૧૨ | વિદેહયોગીની દશા
. १३१३ विदेहविचरणम् .
. १३१४
सत्त्वविभावनम्
- १३१५ सास्थित सभाधिने समकुखे
. १३१५ अहङ्काराऽस्मिताभेदविचारः - १३१६ परवैराग्यजनकधर्ममेघसमाधेः
૧૩૧૬
प्रकृष्टसास्मितसमाधिरूपता.
१३१७ प्रतिसय योगीखोनी खोजजाश
. १३१७ | सत्त्वात्माऽन्यताख्यातिस्वरूपम् .
१३१८ ग्रहीता-ग्रह- ग्राह्य सभापत्तिनी विचारणा
१३१८ ग्राह्य - ग्रहण - ग्रहीतृक्रमेण समापत्तिः.
समापत्तिनी सम....
. १३१९ | योगगोचरराजमार्ग - वर्तन्योः विचारः.
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