Book Title: Dwadash Parv Vyakhtyana Bhashantaram Author(s): Jinduttsuri Gyanbhandar Publisher: Jinduttsuri Gyanbhandar View full book textPage 6
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चातु मासिक व्याख्यानम्. अब विशेषकरके इस चौमासापर्व में श्रावकोंका कर्तव्य दिखाते हैं “सामायिकावश्यकपौषधानि, देवार्चनस्नात्रविलेपनानि । ब्रह्मक्रियादानतपोमुखानि, भव्याश्चतुर्मासिकमंडनानि ॥ १॥" अर्थ-भव्यो ! ये सामायिकादिक धर्म-कृत्य चातुर्मासिकपर्वका मंडन अलङ्कारभूत हैं, ये तुम्हारे सेवनकरनेयोग्य है, ऐसा जानना । यद्यपि चौमासे तीन है, तोभी जिसको उद्देशकरके व्याख्यान किया जाय उसका नाम लेने में दोष नहीं है। यहां कोई पुरुष सामायिक करे. कोई प्रतिक्रमण करे.कोई पौषध करे. कोई देव-पूजा-स्नानविलेपनादिक करे, कोई ब्रह्मचर्य पाले, दान देवे, तप तपे, भावना भावे, यह सब यथाशक्ति करना इसमें कोई विरोध नहीं है। यहां पहले तिथियां देखनी चाहिये। वे तिथियां ३ प्रकार की होती है सो दिखाते है,-"चउद्दसट्टमुहिट्ठपुण्णमासिणित्ति" ऐसे सूत्रकृताङ्गादिकसिद्धान्तके पाठसे महीनेमें २ चतुर्दशी २ अष्टमी, २ अमावस्या और पोर्णमासी इन तिथियों में चारित्रआराधना शीलांगाचार्यादि गीतार्थों के अङ्गीकार करनेसे उद्दिष्ट शब्द करके जिनकल्याणक-तिथियो और पर्युषणा-तिथियोंका भी ग्रहण करना । दूज २, पांचम २, इग्यारस २, इन ज्ञानतिथियों में ज्ञानको आराधना और दर्शन-तिथियों में दर्शनको आराधना। इसकथनसे सम्यग्दृष्टियोंको मिथ्या For Private and Personal Use OnlyPage Navigation
1 ... 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 ... 180