Book Title: Dwadash Parv Vyakhtyana Bhashantaram Author(s): Jinduttsuri Gyanbhandar Publisher: Jinduttsuri Gyanbhandar View full book textPage 5
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir त्याग करना, जीव- मिश्रित महुडा - बील वगैरहके फलोंका और अरनी वगैरके फूलोंका त्याग करना चाहिए । | वर्षाकालमें चन्दलेवा वगैरह पत्र - साक, बहुतसे सूक्ष्म त्रस जीवोंसे मिश्रित होनेके कारण, नहीं खाना चाहिए । योगशास्त्रमें हेमाचार्यजीने गुर्जरादि देशों में महाजन - प्रसिद्ध कहा है कि फाल्गुनकी पौर्णमासीसे लेकर कार्त्तिक पौर्णमासी तक पत्र-साक नहीं खाना; और अत्यन्त पकाहुआ याने नरमहोगया चलित - रस ऐसे काकडी बगैरहका फल जीवाश्रय होनेसे वर्जना; और छिद्रसहित, नहीं पका हुआ फल भी, अन्दर जीवोका सद्भाव होनेसे छोडना । इस प्रकारसे और भी अज्ञातफल तथा सर्व अभक्ष्यवस्तुओंको त्यागना चाहिए । उक्तं च“अज्ञातकं फलमशोधितपत्रशाकं, पूगीफलानि सकलानि च हट्टचूर्णम् । मालिन्य सर्पिरपरीक्षकमानुषाणामेते भवन्ति नितरां किल मांसदोषाः ॥ १ ॥” अर्थ- मनुष्यों को ये चीजें खानेसे निश्चय मांस-दोष लगता है । जिसका नाम कोई नहीं जाने ऐसा फल १, नहीं सोधा हुआ पत्र - शाक २, अखण्ड सोपारी वगैरह फल ३, विकताहुआ दुकानका आटा ४; नहीं परीक्षा | कियाहुआ मैलाघी ५, इन पदार्थोंको खानेसे मांसका दोष होता है ॥ १ ॥ और जो जो द्रव्य ग्रीष्मादिक कालमें शीघ्रविनाशी होय, वे भी उपयोगसहित वर्जनेयोग्य हैं । सज्जनोंको निरवद्य ही ग्रहणकरनाचाहिये । For Private and Personal Use OnlyPage Navigation
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