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दृष्टि भेद से भेद
ही ज्ञात होती है इसीलिए ही द्रव्यदृष्टि कार्यकारी है यह बात हम आगे विस्तार से बतलायेंगे।
यहाँ बतलाये अनुसार द्रव्य-गुण- पर्याय और उत्पाद - व्यय - ध्रुवरूप वस्तु व्यवस्था सम्यक्रूप से न समझ में आयी हो अथवा तो विपरीत रूप धारणा हुई हो तो, सर्व प्रथम उसे सम्यक्रूप से समझ लेना अत्यन्त आवश्यक है क्योंकि उसके बिना सम्यक् दर्शन का विषय समझना अशक्य ही है। इसलिए अब हम यही भाव शास्त्र के आधार से भी दृढ़ करेंगे।
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