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धवला उद्धरण
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करने के लिये निक्षेपों का कथन करना चाहिये।।15।।
मंगल का अर्थ मंगशब्दोऽयमुद्दिष्टः पुण्यार्थस्याभिधायकः । तल्लातीत्युच्यते सद्भिर्मखगल मखलार्थिभिः।।16।।
यह मंग शब्द पुण्य के अर्थ का प्रतिपादन करने वाला माना गया है। उस पुण्य को जो लाता है उसे मंगल के इच्छुक सत्पुरुष मंगल कहते हैं।।16।।
पापं मलमिति प्रोक्तमुपचारसमाश्रयात्। तद्धि गालयतीत्युक्तं मंगलं पण्डितर्जनैः।।17।।
उपचार से पाप को भी मल कहा है। इसलिये जो उसका गालन अर्थात् नाश करता है उसे भी पण्डितजन मंगल कहते हैं।।17।।
षड् अनुयोगद्वार किं कस्स केण कत्थ व केवचिरं कदिविध य भावो त्ति। छहि अणिओग-हारेहि सव्व-भावाणुगंतव्वा।।18।।
पदार्थ क्या है, किसका है, किसके द्वारा होता है, कहाँ पर होता है, कितने समय तक रहता है, कितने प्रकार का है, इस प्रकार इन छह अनुयोग-द्वारों से संपूर्ण पदार्थों का ज्ञान करना चाहिये।।18।।
_मंगल का स्थल आदि-अवसाण-मज्झे पण्णत्त मंगल जिणिदेहि। तो कय-मंगल-विणयो इण्मो सुत्तं पवक्खामि।।19।।
जिनेन्द्रदेव ने आदि, अन्त और मध्य में मंगल करने का विधान किया है। अतः मंगल-विनय को करके मैं इस सूत्र का वर्णन करता हूँ।।19॥