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धवला उद्धरण
आयु क्षीण होने के कारण विस-वेयन-रत्तक्खय-भय-सत्थग्गहण-संकिलेसेहि। आहारुस्सासाणं णिरोहदो छिज्जदे आऊ।।12।।इदि।। विष के खा लेने से, वेदना से, रक्त का क्षय हो जाने से, तीव्र भय से, शस्त्रघात से, संक्लेश की अधिकता से तथा आहार और श्वासोच्छ्वास के रुक जाने से आयु क्षीण हो जाती है।।12।।
विशेषार्थ- जैसे कदली (केला) के वृक्ष का तलवार आदि के प्रहार से एकदम विनाश हो जाता है, उसी प्रकार विष-भक्षणादि निमित्तों से भी जीव की आयु एकदम उदीर्ण होकर छिन्न हो जाती है। इसे ही अकाल-मरण कहते हैं और इसके द्वारा जो शरीर छूटता है उसे च्यावित शरीर कहते हैं।
सचित्त एवं अचित्त मंगल सिद्धत्थ-पुण्ण-कुंभो वंदणमाला य मंगलं छत्तं। सेदो वण्णो आदसणो य कण्णा य जच्चसे।।13।।
उन दोनों में से लौकिक मंगल सचित्त, अचित्त और मिश्र के भेद से तीन प्रकार का है। इनमें- “सिद्धार्थ' अर्थात् श्वेत सरसों, जल से भरा हुआ कलश, वंदनमाला, छत्र, श्वेत-वर्ण और दर्पण आदि अचित्त मंगल हैं और बालकन्या तथा उत्तम जाति का घोड़ा आदि सचित्त मंगल
हैं।।13।।
विशेषार्थ- पंचास्तिकाय की टीका में भी जयसेन आचार्य ने इन पदार्थों को मंगलरूप मानने में भिन्न-भिन्न कारण दिये हैं। वे इस प्रकार हैंजिनेन्द्रदेव ने व्रतादिक के द्वारा परमार्थ को प्राप्त किया और उन्हें सिद्ध यह संज्ञा प्राप्त हुई, इसलिये लोक में सिद्धार्थ अर्थात् श्वेत सरसों मंगलरूप माने गये। जिनेन्द्रदेव संपूर्ण मनोरथों से अथवा केवलज्ञान से परिपूर्ण हैं,