Book Title: Dhavala Uddharan
Author(s): Jaikumar Jain
Publisher: Veer Seva Mandir

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Page 13
________________ धवला उद्धरण पर्यायार्थिक नय की अपेक्षा पदार्थ नियम से उत्पन्न होते हैं और नाश को प्राप्त होते है, क्योंकि प्रत्येक द्रव्य में प्रतिक्षण नवीन-नवीन पर्यायें उत्पन्न होती हैं और पूर्व-पूर्व पर्यायों का नाश होता है, किन्तु द्रव्यार्थिक नय की अपेक्षा वे सदा अनुत्पन्न और अविनष्ट स्वभाव वाले हैं। उनका न तो कभी उत्पाद होता है और न कभी नाश होता है, वे सदाकाल स्थितिस्वभाव रहते हैं।।8।। विशेषार्थ- उत्पाद दो प्रकार का माना गया है, उसीप्रकार व्यय भी। एक स्वनिमित्त और दूसरा परनिमित्त। इसका खुलासा इसप्रकार समझना चाहिये कि प्रत्येक द्रव्य में आगम प्रमाण से अगुरुलघुगुण के अनन्त अविभागप्रतिच्छेद माने गये हैं। जो षड्गुणहानि और षड्गुणवृद्धिरूप से निरन्तर प्रवर्तमान रहते हैं। इसलिये इनके आधार से प्रत्येक द्रव्य में उत्पाद और व्यय हुआ करता है। इसी को स्वनिमित्तोत्पाद-व्यय कहते हैं। उसी प्रकार परनिमित्त से भी द्रव्य में उत्पाद और व्यय का व्यवहार किया जाता है। जैसे स्वर्णकार ने कड़े से कुण्डल बनाया। यहाँ पर स्वर्णकार के निमित्त से कड़े रूप सोने की पर्याय नष्ट होकर कुण्डल रूप पर्याय का उत्पाद हुआ है और इसमें स्वर्णकार निमित्त है, इसलिये इसे परनिमित्त उत्पाद और व्यय समझ लेना चाहिये, क्योंकि आकाशादि निष्क्रिय द्रव्य दूसरे पदार्थों के अवगाहन, गति आदि में कारण पड़ते हैं और अवगाहन, गति आदि में निरन्तर भेद दिखाई देता है। इसलिये अवगाहन, गति आदि के कारण भी भिन्न होने चाहिये। स्थिति वस्तु के अवगाहन में कारण है। इस तरह अवगाह्यमान वस्तु के भेद से आकाश में भेद सिद्ध हो जाता है और इसलिए आकाश में परनिमित्त से भी उत्पाद-व्यय का व्यवहार किया जाता है। इसी प्रकार धर्मादिक द्रव्यों में पर-निमित्त से भी उत्पाद और व्यय समझ लेना चाहिये। इस प्रकार यह सिद्ध हो गया कि पर्यायार्थिक नय की अपेक्षा पदार्थ उत्पन्न भी होते है और

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