Book Title: Dharmveer Mahavir aur Karmveer Krushna
Author(s): Sukhlal Sanghavi
Publisher: Aatmjagruti Karyalay

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Page 6
________________ सद्गुणोंकी उपासना करनेवाला या दूसरोंके समक्ष उस आदर्शको उपस्थित करनेवाला व्यक्ति, किसी विशिष्ट मनुष्यको ही अपना श्रादर्श मानकर उसका अनुकरण करनेका प्रयत्न करता है । इस प्रकार सद्गुणोंकी प्रतिष्ठा की वृद्धिके साथही साथ अदृश्य देवपूजाकास्थान रश्य मनुष्यपूजाको प्राप्त होता है। मनुष्य पूजाकी प्रतिष्ठा । यद्यपि सद्गुणोंकी उपासना और मनुष्यपूजाका पहलेसे ही विकास होता जारहा था, तथापि भगवान महावीर और बुद्ध इन दोनोंके समयमें इस विकास को असाधारण विशेषता प्राप्त हुई, जिसके कारण क्रियाकाण्ड और वहमोंके किलोंके साथ साथ उसके अधिष्ठायक अदृश्य देवोंकी पूजाको भी तीव्र प्राघात पहुँचा । भगवान महावीर और बुद्ध का युग अर्थात् सचमुच मनुष्य पूजाका युग । इस युगमें सैकड़ों हजारों स्त्री पुरुष क्षमा, सन्तोष, तप, ध्यान आदि सद्गुणों के संस्कार प्राप्त करनेके लिये अपने जीवन को अर्पण करते हैं और इन गुणोंकी पराकाष्ठाको पहुँचे हुए अपने श्रद्धास्पद महावीर और बुद्ध जैसे मनुष्य-व्यक्तियोंकी ध्यान या मूर्ति द्वारा पूजा करते हैं। इस प्रकार मानव पूजाके भावकी बढ़ती के साथ ही देवमूर्तिका स्थान विशेषतः मनुष्यमूर्तिको प्राप्त होता है। महावीर और बुद्ध जैसे तपस्वी, त्यागी और ज्ञानी पुरुषों द्वारा सदगुणोंकी उपासनाको वेग मिला और उसका स्पष्ट प्रभाव क्रियाकाण्डप्रधान ब्राह्मण संस्कृति पर पड़ा। वह यह कि जो ब्राह्मण संस्कृति एक बार देव दानव और दैत्योंकी भावना एवं उपासनामें मुख्य रूपसे मशगूल थी, उसने भी मनुष्यपूजाको स्थान दिया। अब जनता बहश्य देवके बदले किसी महान विभूति रूप मनुष्यको पूजने, मानने Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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