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पर सम्प्रदायोंके शास्त्रों में उपलब्ध निर्देश एवं वर्णन। ___ ऊपर कहे हुए दृष्टिविन्दुओंसे कतिपय घटनाओंका उल्लेख करने से पूर्व एक बात यहाँ खास उल्लेखनीय है । वह विचारकोंके लिये कौतूहलवर्द्धक है. इतना ही नहीं वरन् अनेक ऐतिहासिक रहस्यों के उद्घाटन और विश्लेषणके लिए उनसे सतत् और अवलोकनपूर्ण मध्यस्थ प्रयत्नकी अपेक्षा भी रखती है। वह यह है-बौद्धपिटकोंमें ज्ञातपुत्रके रूपमें भगवान महावीरका अनेकों बार स्पष्ट निर्देश पाया जाता है परन्तु राम और कृष्णमें से किसीका भी निर्देश नहीं है। पीछेकी बौद्ध जातकोंमें ( देखिए दशरथ जातक नं० ४६१) राम
और सीताकी कुछ कथा आई है परन्तु वह वाल्मीकिके वर्णनसे .एकदम भिन्न प्रकारकी है। उसमें सीताको रामकी बहिन कहा गया है। कृष्णकी कथा तो किसी भी बौद्धग्रन्थमें आज तक मेरे देखने में नहीं आई । किन्तु जैनशास्त्रोंमें राम और कृष्ण-इन दोनोंकी जी. बन कथाोंने काफी स्थान घेरा है। पागम माने जाने और अन्य आगम ग्रंथोंकी अपेक्षा प्राचीन गिने जानेवाले अंग साहित्यमें, रामचन्द्रजीकी कथा तो नहीं है फिर भी कृष्णकी कथा दो अंगों-जाता और अंतगड-में स्पष्ट और विस्तृत रूपसे आती है । आगम ग्रंथों में स्थान न पान वाली रामचन्द्रजीकी कथा भी पिछले श्वेताम्बर, दिगम्बर दोनोंके प्राकृत संस्कृत के कथासाहित्यमें विशिष्ट स्थान प्राप्त करती है । जैनसाहित्यमें वाल्मीकि रामायणकी जगह जैनरामायण तक बन जाती है । यह तो स्पष्ट है कि श्वेताम्बर, दिगम्बर-दोनों के साहित्यमें राम और कृष्णकी कथा ब्राह्मण साहित्य जैसी हो ही नहीं सकती, फिर भी इन कथाओं और इनके वर्णनकी जैनशैली को देखते हुए यह स्पष्ट प्रतीत हो जाता है कि ये कथाएँ मूलतः प्रा
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