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( ३२ ) मय बनती जाती है और वह भी | लुब्ध न होकर एकदम अलिप्त ब्रह्म यहाँ तक कि अन्तमें पद्मपुराणमें चारी रहते हैं। भोगका रूप धारण करके बल्लभ । -हरिवंश, सर्ग ३५, श्लो, ६५. सम्प्रदायकी भावनाके अनुसार महा. ६६ पृ० ३६९ देवके मुखसे उसे समर्थन मिलता है।
-पद्मपुराण भ० २४५ श्लोक १७५-१७६ पृ० ८८६-८९०
(८) इन्द्रने ब्रजवासियों पर (6) जिनसेनके कथनानुसार जो उपद्रव किए उन्हें शान्त करनेके | इन्द्र द्वारा किए हुए उपद्रवोंको शांत लिए कृष्ण गोवर्धन पर्वतको सात | करने के लिए नहीं, वरन् कसके द्वारा दिन तक हाथसे उठाए रखते हैं। भेजी हुई देवीके उपद्रवोंको शान्त
करने के लिए कृष्णने गोवर्धनपवंत को उठाया।
-हरिवंश सर्ग ३५, श्लो, ४४
| ५०, पृ० ३६७ पुराणों और जैनग्रन्थों में वर्णित कृष्णके जीवनको कथाके, ऊपर जोथोड़ेस नमूने दिये गये हैं उन्हें देखते हुए इस सम्बन्धमें शायद ही यह संदेह रहे कि कृष्ण वास्तवमें वैदिक या पौराणिक पात्र हैं
और जैनप्रन्थोंमें उन्हें पीछेसे स्थान मिला है । पौराणिक कृष्ण जीवनकी कथामें मार-फाड़, असुर संहार और श्रृंगारी लीलाएँ हैं। जैन ग्रन्थकारोंने अपनी अहिंसा और त्यागकी भावनाके अनुसार उन लीलाओंको बदलकर अपने साहित्यमें एक भिन्न ही रूप दिया है। यही कारण है कि पुराणोंकी भौति जैनप्रन्थों में न तो कंसके
द्वारा बालकोंकी हत्या दिखाई देती है और न कंसके मेजे हुए उप. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com