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(४८ ) भिन्न दिखाई देनेवाले मागोंका उदार और व्यापक दृष्टिसे समन्वय करना प्रत्येक धर्मात्मा और प्रतिभाशाली पुरुषका आवश्यक कर्त्तव्य है । अनेकान्तवादकी उत्पत्ति वास्तव में ऐसी ही विश्वव्यापी भावना और दृष्टिसे हुई है तथा उसे घटाया जा सकता है।
इस जगह एक धर्मवीर और एक कर्मवीरके जीवनकी कुछ घटनाओंकी तुलना करनेके विचारमें से यदि हम धर्म और कर्मके व्यापक अर्थका विचार कर सकें तो यह चर्चा शब्दपटु पंडितोंका को। विवाद न बनकर राष्ट्र और विश्वकी एकतामें उपयोगी होगी।
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