Book Title: Dharmveer Mahavir aur Karmveer Krushna
Author(s): Sukhlal Sanghavi
Publisher: Aatmjagruti Karyalay

View full book text
Previous | Next

Page 49
________________ ( ४५ ) बाह्य-प्राकृतिक-समस्त उपसगोंको यह महान् पुरुष अपने आत्मबल और दृढ़ निश्चयके द्वारा जीत लेते हैं और अपने ध्येयमें आगे बढ़ते हैं । यह विजय कोई ऐसा वैसा साधारण मनुष्य नहीं प्राप्त कर सकता, अतः इस विजयको दैवीविजय कहने में जरा भी अतिशयोक्ति नहीं है । कर्मवीर कृष्णके जीवनमें यह पुरुषार्थ बहिर्मुख होकर लोक संग्रह और सामाजिक नियमनका रास्ता लेता है । इस ध्येयको स. फल बनान्में शत्रुओं या विरोधियों की ओरसे जो अड़चनें डाली जाती हैं, उन सबको कर्मवीर कृष्ण अपने धैर्य, बल तथा चतुराई से हटाकर अपना कार्य सिद्ध करते हैं । यह लौकिक सिद्धि साधारण जनताके लिए अलौकिक या दैवी मानी जाय तो कुछ असंभव नहीं। इस प्रकार हम इन दोनों महान पुरुषोंके जीवनको, यदि कलई दूर 'करके पढ़ें तो उलटी अधिक स्वाभाविकता और संगतता नजर आती है और उनका व्यक्तित्व अधिकतर माननीय, विशेषतया इस 'युगमें, बन जाता है। उपसंहार। कर्मवीर कृष्णके सम्प्रदायके भक्तोंको धर्मवीर महावीरके प्रा. दर्शकी विशेषताएँ चाहे जितनी दलीलोंसे समझाई जाँय, किन्तु वे शायद ही पूरी तरह उन्हें समझ सकेंगे। इसी प्रकार धर्मवीर महा. वीरके संप्रदायके अनुयायी भी शायद ही कर्मवीर कृष्णके जीवनादर्शकी खूबियों समझ सके । जब हम इस साम्प्रदायिक मनोवृत्ति को देखते हैं तो यह विचार करना आवश्यक हो जाता है कि क्या वास्तवमें धर्म और कर्मके आदर्शोके बीच ऐसा कोई विरोध है जिससे एक आदशके अनुयायी दूसरे आदर्शको एक दम अप्राय कर देते हैं या उन्हें वह भनाब प्रतीत होता है ? . Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

Loading...

Page Navigation
1 ... 47 48 49 50 51 52 53 54