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( ४४ ) फिर छोड़ देते हैं । देशभर में जहाँ जहाँ गाँधीजी जाते हैं वहाँ वहाँ जनसमुद्र में ज्वारसा उमड़ पाता है। कोई उनका अत्यन्त विरोधी भी जब उनके सामने जाता है तो एक बार तो मनोमुग्ध हो गर्वगलित हो ही जाता है। वह एक वास्तविक बात है, स्वाभाविक है
और मनुष्यबुद्धिगम्य है । किन्तु यदि इसी बातको कोई दैवी घटना के रूपमें वर्णन करे तो न तो कोई बुद्धिमान् मनुष्य उसे सुनने या स्वीकार करनेको तैयार होगा और न उसका असली मूल्य जो अभी आंका जाता है, क़ायम रह सकता है । यह युगबल अर्थात् वैज्ञानिक युगका प्रभाव है । यह बल प्राचीन या मध्ययुगमें नहीं था अतएव उस समय इसी प्रकारकी स्वाभाविक घटनाको जबतक देवी या चमत्कारिक लिबास न पहनाया जाता तबतक लोगोंमें उसका प्रचार न हो पाता था । यह दोनों युगोंका अन्तर है, इसे समझकर ही हमें प्राचीन और मध्ययुगकी बातोंका तथा जीवनवृत्तान्तोंका विचार करना चाहिए।
अब अन्तमें यह प्रश्न उपस्थित होता है कि शास्त्रमें उल्लिखित चमत्कारपूर्ण और दैवी घटनाओंको आज कल किस अर्थमें समझना और पढ़ना चाहिए ? इसका उत्तर स्पष्ट है । वह यह कि किसी भी महान् पुरुषके जीवनमें 'शुद्ध बुद्धियुक्त पुरुषार्थ' ही सच्चा और मानने योग्य तत्त्व होता है। इस तत्त्वको जनताके समक्ष उपस्थित करनेके लिए शास्त्रकार विविध कल्पनाओंकी भी योजना करते हैं। धर्मवीर महावीर हों या कर्मवीर कृष्ण हों, किन्तु इन दोनोंके जीवनमें से सीखने योग्य तत्त्व तो एकही होता है । धर्मवीर महावीर के जीवन में यह पुरुपार्थ अन्तर्मुख होकर आत्मशोधनका मार्ग प्र. हण करता है और आत्मशोधनके समय आने वाले आन्तरिक या Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com