Book Title: Dharmveer Mahavir aur Karmveer Krushna
Author(s): Sukhlal Sanghavi
Publisher: Aatmjagruti Karyalay

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Page 45
________________ ( ४१ ) मनुष्य रूप असुरों द्वारा किए हुए उपद्रव एवं उत्पातोंका पुराणोंमें जो अस्वाभाविक वर्णन है और उन उत्पातोंका कृष्ण द्वारा किया हुआ जो अस्वाभाविक किन्तु मनोरंजक वर्णन है वही अस्वाभाविक होने पर भी जनताके मानसमें गहरा उतरा हुआ वर्णन, अहिंसा और त्यागकी भावनावाले जैनग्रन्थकारोंके हाथों योग्य संस्कार पाकर महावीरके जन्म, बालक्रीड़ा और यौवनकी साधनावस्थाके समय देवकृत विविध घटनाओंके रूपमें स्थान पाता है। पौराणिक वर्णन की विशेष अस्वाभाविकता और असंगतिको हटानेके लिए जैनग्रन्थकारोंका यह प्रयास था किन्तु महावीर जीवन में स्थान पाए हुए पौराणिक घटनाओंके वर्णनमें कुछ अंशोंमें एक प्रकारकी अस्वाभाविकता एवं असंगति रह ही जाती है और इसका कारण तत्कालीन "जनताकी रुचि है। .३-कथाग्रन्थों के साधनों का पृथक्करण और उनका औचित्य । अब हम तीसरे दृष्टिविन्दु पर आते हैं । इसमें विचारणीय यह है कि "जनतामें धर्मभावना जागृत रखने तथासम्प्रदायका आधार मजबूत करने के लिए उस समय कथाग्रन्थों या जीवनवृत्तान्तोंमें मुख्य रूपसे किस प्रकारके साधनोंका उपयोग किया जाता था ? उन साधनोंका पृथक्करण करना और उनके औचित्यका विचार करना।" ___ ऊपर जो विवेचना की गई है, वह प्रारम्भमें किसी भी अति. श्रद्धालु साम्प्रदायिक भक्तको आघात पहुँचा सकती है, यह स्पष्ट है क्योंकि साधारण उपासक और भक्त जनताकी अपने पूज्य पुरुषके प्रति जो श्रद्धा होती है वह बुद्धिशांधित या तकपरिमार्जित नहीं होती। ऐसी जनताके खयाल से शास्त्रमें लिखा हुआ प्रत्येक अक्षर Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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