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हैं । जिनसेनने बलभद्रको ही नृसिंह रूपमें घटानेकी मनोरंजक कल्पना की है और लोकमें कृष्ण और बलभद्रकी सार्वत्रिक पूजा कैसे हुई,इसकी युक्ति कृष्णने नरकमें रहते रहते बल. भद्रको बताई. ऐसा अति साम्प्रदायिक और काल्पनिक वर्णन किया है।
-हरिवंशपुराण सर्ग ३५, श्लो, , -भागवत, प्रथम स्कंध, अ. | १.५५, पृ० ६१८-६२५ ३ श्लो, १-२४ पृ० १०-११
। (६) श्वेताम्बरों के अनुसार द्रौ. . (६) द्रौपदी पाँच पांडवों की पदीके पाँच पति हैं ( ज्ञाता १६ वाँ पत्नी है और कृष्ण पांडवोंके परम
अध्ययन ) किन्तु जिनसेनने अर्जुन सखा हैं । द्रौपदी कृष्णभक्त है और
को ही द्रौपदीका पति बताया है और कृष्ण स्वयं पूर्णावतार हैं।
उसे एक पतिवालीही चित्रित किया -महाभारत
है (हरिवंश सर्ग ५४ श्लो, १२-२५) द्रौपदी तथा पाण्डव सभी जैनदीक्षा लेते हैं । कोई मोक्ष और कोई स्वर्ग जाते हैं । सिर्फ कृष्ग कर्मोदयके कोरण जैनदीक्षा नहीं ले सकते फिर भी बाईसवें तीर्थकर अरिष्टनेमिके अनन्य उपासक बनकर भावी तीथ. कर पदकी योग्यता प्राप्त करते हैं ।
-हरिवंश, सगं ६५ श्लो० १६
पृ. ६१९-६२० (७) कृष्णकी रासलीला एवं | (७) कृष्ण रास और गोपी क्रीड़ा गोपीक्रीड़ा उत्तरोत्तर अधिक शृंगार- | करते हैं पर वे गोपियों के हावभावमें Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com