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को पछाड़ता है और उस जैन गृहस्थ के घर पले हुए छह सजीव देवकीबालक आगे जाकर नेमिनाथ तीर्थकरके समीप दीक्षा लेकर मोक्ष जाते हैं।
-हरिवंश, सर्ग ३५, श्लो० १३५ पृ० ३६३-३६४
(३) विष्णुकी योगमाया यशोदाके । (३) यशोदाकी तत्काल जन्मी यहाँ जन्म लेकर वसुदेवके हाथों दे | हुई पुत्री कृष्णके बदले देवकीके पास वकीके पास पहुँचती है और उसी लाई जाती है। कंस उस जीवित समय देवकीके गर्भसे उत्पन्न हुए बालिकाको मारता नहीं है । वसुदेवकृष्ण वसुदेवके हाथों यशोदाके यहाँ | हिन्डीके अनुसार नाक काटकर और सुरक्षित पहुँचते हैं । आई हुई पुत्री | जिनसेनके कथनानुसार नाक सिर्फ को मार डालने के लिए कंस पटकता | चपटा करके छोड़ देता है । यह बा. है। पर, वह योगामाया होने के | लिका आगे चलकर तरुण अवस्थामें कारण निकल भागती है और काली. एक साध्वीसे जैनदीक्षा ग्रहण करती दुर्गा आदि शक्तिके रूपमें पुजती है। | है और जिनसेनके हरिवंशके अनुसार
-भागवत, दशमस्कन्ध, अ० ४ तो यह साध्वी ध्यान अवस्थामें मर श्लो, २-१० पृ० ८०९ कर सद्गति पाती है लेकिन उसकी
अंगुलीके लोहू भरे हुए तीन टुकड़ों से, वह बादमें त्रिशूलधारिणी काली के रूपमें विन्ध्याचल में प्रतिष्ठा पाती है। इस कालीके समक्ष होने वाले भैंसोंके बधको जिनसेनने खूब भाड़े हाथों लिया है जो भाजतकभी विन्ध्या.
चलमें होता है। J -हरिवंश सर्ग ३९, लो, १
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