Book Title: Dharmveer Mahavir aur Karmveer Krushna
Author(s): Sukhlal Sanghavi
Publisher: Aatmjagruti Karyalay

View full book text
Previous | Next

Page 33
________________ महावीरके जीवन के साथ उल्लिखित घटनाओंमें से लिसी किसी की मलक नज़र आती है । आचारांग सूत्रके-जो पहला अंग है और जिसकी प्राचीनता निर्विवाद सिद्ध है-पहले श्रुतस्कन्ध ( उपधाम सूत्र अ०९) में भगवान महावीरकी साधक अवस्थाका वर्णन है। परन्तु इसमें किसी भी देवी, चमत्कारी या अस्वाभाविक उपसर्गका नाम निशान तक नहीं है । इसमें तो कठोर साधकके लिये सुलभ बिलकुल स्वाभाविक मनुष्यकृत तथा पशुपक्षीकृत उपसर्गोंका वर्णन है, जो अक्षरशः सत्य प्रतीत होता है. और एक वीतराग संस्कृति के निर्देशक शास्त्र के साथ सामंजस्य रखने वाला मालूम होता है । बादमें मिलाये हुये माने जाने वाले इसी आचारांगके द्वितीय श्रुतस्कन्ध अत्यन्त संक्षेपमें भगवानकी सारी जीवनकथा आती है। इसमें गर्भक संहरणकी घटनाका निर्देश आता है, और किसी प्रकार का व्यौरा दिय विना-किसी विशेष घटनाका निरूपण न करते हुए'सिर्फ भयंकर उपसगोंको सहन करनेकी बात कही गई है । भगवती नामक पाँचवें अंगमें महावीरके गर्भसंहरणकी घटनाका वर्णन विशेष पल्लवित रूपमें मिलता है। उसमें यह कथन है कि यह घटना इन्द्रने देवके द्वारा कराई । फिर इसी अंगमें दूसरी जगह महावीर अपने को देवानन्दाका पुत्र बताते हुए गौतमको कहते हैं कि (भगवती श० ९ उद्देश ३३ पृ० ४५६) यह देवानन्दा मेरी माता है। (इनका जन्म त्रिशलाकी कोखसे होने के कारण सब लोग इन्हें त्रिशलापुत्रके रूपमें तबतक जानते होंगे, ऐसी कल्पना दिखाई देती है)। ___ यद्यपि अंग विक्रमकी पाँचवीं शताब्दीके आस पास संकलित हुए हैं तथापि इस रूपमें या कहीं कहीं कुछ भिन्न रूपमें इन अंगों का अस्तित्व पाँचवीं शताब्दीसे प्राचीन है। इसमें भी भाचारांगके Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

Loading...

Page Navigation
1 ... 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54