________________
( २८ ) शब्दों में, अंधश्रद्धालु भक्तोंकी अप्रीतिको अंगीकार करके और उनकी परवाह न करते हुए यह स्पष्ट कर देना उचित है कि भगवान महावीरकी प्रतिष्ठा न तो इन घटनाओंमें है और न बालकल्पना ऐसे दिखाई देनेवाले वर्णनों में ही । कारण स्पष्ट है। इस प्रकारकी दैवी 'घटनाएँ और अद्भुत चमत्कारी प्रसंग तो चाहे जिसके जीवन में लिखे हुए पाये जासकत हैं। अतएव जब धर्मवीर दीर्घ तपस्वीके जीवनमें पग पग पर देवोंका आना देखा जाता है, दैवी उपद्रवोंको बाँचा जाता है, और असंभव प्रतीत होनेवाली कल्पनाओंका रंग चढ़ा हुआ नजर आता है तो ऐसा मालूम होने लगता है कि भगवान महावीर के जोवन-वृत्तान्त में मिली हुई ये घटनाएँ वास्तविक नहीं हैं । ये घटनाएँ समीपवर्ती वैदिक-पौराणिक वर्णनमें से बादमें लेली गई हैं। ___ इस विधानको स्पष्ट करनके लिए यहाँ दो प्रकारके प्रमाण उपस्थित किये जाते हैं:
(१) प्रथम यह कि स्वयं जैन ग्रन्थों में महावीर जीवन संबंधी उक्त घटनाएँ किस क्रमसे मिलती हैं, और ।
(२) दूसरे यह कि जैन ग्रन्थों में वर्णित कृष्णके जीवन-प्रसंगों की पौराणिक कृष्ण-जीवनके साथ तुलना करना और इन जैन तथा पौराणिक ग्रन्थोंके समयका निर्धारण करना।
(१) जैन सम्प्रदायमें मुख्य दो फिरके हैं, दिगरबर और श्वेता. म्बर । दिगम्बर फिरकेके साहित्यमें महावीरका जीवन बिलकुल
खंडित है और साथ ही इसी फिर केके अलग अलग प्रन्थोंमें कहीं ' कहीं कुछ कुछ विसंवादी भी है। अतएव यहाँ श्वेताम्बर फिरकेके
ग्रंथोंको ही सामने रखकर विचार किया जाता है। सबसे प्राचीन : माने जानेवाले अंग साहित्यमें सिर्फ दो अंग ही ऐसे हैं कि जिनमें Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com