________________
( ३१ ) जान पड़ता है कि जो घटनाएँ अस्वाभाविक प्रतीत होती हैं और जिनके बिना भी मूल जैनभावना अबाधित रह सकती है, वे घट. नाएँ किसी न किसी कारणसे जैन साहित्यमें-महावीर जीवनमेंबाहरसे आ घुसी हैं।
इस बातको सिद्ध करनेके लिए यहाँ एक घटना पर विशेष विचार करना अप्रासंगिक न होगा । श्रावश्यकनियुक्ति, उसके भाष्य
और चूर्णिमें महावीरके जीवनकी तमाम घटनाएँ संक्षेप या विस्तार से वर्णित हैं । छोटी बड़ी तमाम घटनाओं का संग्रह करके उन्हें सुरक्षित रखने वाली नियुक्ति, भाष्य तथा चूर्णिके लेखकोंने महावीरके द्वारा सुमेरु कँपानके आकर्षक वृत्तान्तका उल्लेख नहीं किया, जबकि उक्त ग्रंथाके आधारपर महावीरजीवन लिखने वाले हेमचन्द्रन मेरुकम्पनका उल्लेख किया है। प्राचार्य हेमचन्द्रके द्वारा किया हुआ यह उल्लेख यद्यपि उसके आधारभूत नियुक्ति, भाष्य या चूर्णिमें नहीं है, फिर भी आठवीं शताब्दीके दिगम्बर कवि रविषेणकृत पद्मपुराण में है + । रविषेणने यह वर्णन प्राकृतके 'पउमचरिय' से लिया है क्योंकि रविषेणका पद्मपुराण प्राकृत पउमचरियका अनुकरण मात्र है, और पउमचरियों (द्वि० पर्व श्लो० २५-२६ पृ० ५) यह वर्णन उल्लिखित है। पद्मचरित दिगम्बर सम्प्रदायका ग्रंथ है, इसमें जरा भी विवाद नहीं है । पउमचरियके विषय में अभी मतभेद है। पउमचरिय चाहे दिगम्बरीय हो, चाहे श्वेताम्बरीय हो, अथवा इन दोनों रूढ़ सम्प्रदायोंसे भिन्न तीसरे किसी गच्छके प्राचार्यकी कृति हो, कुछ भी हो, यहाँ तो सिर्फ यही विचारणीय है कि पउमचरियमें निर्दिष्ट मेरुकम्पन की घटनाका मूल क्या है ? ___द्वितीय पर्व श्लोक ७५-७६ पृष्ठ १५ ।
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com