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पस्वीको नमन किया और भक्त। -भागवत, दशमस्कन्ध, अ० होकर उनकी पूजन करके चलता ३०, श्लो• १-४०, पृ० ९०४-७ बना।
-त्रिषष्ठिशलाकापुरुषचरित्र, पर्व १०, सगं ४, पृ० ६७-७२
दृष्टिविन्दु।
(१) संस्कृति भेद
ऊपर नमूनके तौरपर जो थोड़ीसी घटनाएँ दी गई हैं, वे आर्यावर्तकी संस्कृति के दो प्रसिद्ध अवतारी पुरुषोंके जीवन में की हैं। उनमें से एक तो जैनसम्प्रदायके प्राणस्वरूप दीर्घतपस्वी महावीर हैं और दूसरे वैदिक सम्प्रदायके तेजोरूप योगीश्वर कृष्ण हैं । ये घटनाएँ सचमुच घटित हुई हैं, अर्धकल्पित हैं या एकदम कल्पित हैं, इस विचारको थोड़ी देरके लिए एक ओर रखकर यहाँ यह विचार करना है कि उक्त दोनों महापुरुषोंकी जीवनघटनाओंका ऊपरी ढाँचा एक सरीखा होनेपर भी उनके अन्तरंगमें जो अत्यंत भेद दिखाई दे रहा है, वह किस तत्वपर, किस सिद्धान्त पर और किस दृष्टि-विन्दु पर अवलम्बित है ?
उक्त घटनाओंकी साधारणरूपसे किन्तु ध्यानपूर्वक जाँच करने वाले पाठकपर तुरन्तही यह छाप पड़ेगी कि एक प्रकारकी घटनाओं में तप, सहिष्णुता और अहिंसाधर्म झलक रहा है, जब कि दूसरी Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com