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(७) बुद्धको अलग करदें तो सामान्यतया यह कह सकते हैं कि बाक्रीके तीनों पुरुषोंकी पूजा, उनके सम्प्रदाय तथा उनका अनुयायीवर्ग भारतवर्ष में ही विद्यमान है; जब कि बुद्धकी पूजा,सम्प्रदाय तथा उनका अनुयायीवर्ग एशिया-व्यापी बना है । राम और कृष्णके आदर्शोका प्रचारकवर्ग पुरोहित होनेके कारण गृहस्थ है जब कि महावीर और बुद्ध के बादशोंका प्रचारकवर्ग गृहस्थ नहीं, त्यागी है । राम और कृष्णके उपासकोंमें हजारों सन्यासी हैं, फिर भी वह संस्था महावीर एवं बुद्धके भिक्षुसंवकी भाँति तन्त्रबद्ध या व्यवस्थित नहीं है। गुरु पदवीको धारण करनेवाली हजारों स्त्रियाँ श्राजभी महावीर और युद्धके भिक्षुसंघमें मौजूद हैं, जब कि राम और कृष्णके उपासक सन्यासीवर्गमें वह वस्तु नहीं है। राम और कृष्णके मुखसे साक्षात् उपदेश किये हुए किसी शास्त्रके होनेके प्रमाण नहीं हैं जबकि महावीर और बुद्धके मुखसे साक्षात् उपदिष्ट योदे बहुत अंश अब भी निर्विवाद रूपसे मौजूद हैं। राम और कृष्णके मत्ये मदे हुए शास्त्र संस्कृत भाषामें हैं, जब कि महावीर और बुद्धके उपदेश तत्कालीन प्रचलित लोकभाषामें हैं।
तुलनाकी मर्यादा और उसके दृष्टिबिन्दु । हिन्दुस्थानमें सार्वजनिक पूजा पाये हुए ऊपरके चार महापुरुषों में से किसी भी एकके जीवन के विषय में विचार करना हो या उनके सम्प्रदाय, तत्त्वज्ञान अथवा कार्यक्षेत्रका विचार करना हो वो अब. शेष तीनों के साथ सम्बन्ध रखनेवाली उस उस वस्तुका विचार मी साथ ही करना चाहिए। क्योंकि इस समन भारतमें एक ही नाति भोर एक ही कुटुम्बमें अक्सर चारों पुरुषोंकी या उनमें से अनेक
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