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ह्मणसाहित्यकी ही होनी चाहिए और लोकप्रिय होनेपर उन्हें जैनसाहित्य में जैनदृष्टिसे स्थान दिया गया होना चाहिए। इस विषयको हम आगे चलकर स्पष्ट करेंगे ।
आश्चर्य की बात तो यह है कि जैनसंस्कृति से अपेक्षाकृत अधिक भिन्न ब्राह्मण संस्कृति के माननीय राम और कृष्णने जैनसाहित्यमें जितना स्थान रोका है, उससे हजारवें भाग भी स्थान भगवान् महावीरके समकालीन और उनकी संस्कृति से अपेक्षाकृत अधिक नज़दीक तथागत बुद्ध के वर्णनको प्राप्त नहीं हुआ ! बुद्धका स्पष्ट या अस्पष्ट नामनिर्देश केवल आगम ग्रन्थों में एकाध जगह श्राता है (यद्यपि उनके तत्त्वज्ञानकी सूचनाएँ विशेष प्रमाण में मिलती हैं) । यह तो हुआ बौद्ध और जैनकथाग्रन्थोंमें राम और कृष्णकी कथा के विषय में; अब हमें यह भी देखना चाहिए कि ब्राह्मण - शास्त्रमें महावीर और र बुद्धका निर्देश कैसा क्या है ? पुराणोंसे पहले के किसी ब्राह्मण प्रन्थ में तथा विशेष प्राचीन माने जाने वाले पुराणोंमें यहाँ तक कि महाभारत में भी, ऐसा कोई निर्देश या अन्य वर्णन नहीं है जो ध्यान आकर्षित करे । फिर भी इसी ब्राह्मणसंस्कृतिके अत्यंत प्रसिद्ध और अतिशय माननीय भागवत में बुद्ध, विष्णुके एक अवतार के रूपमें ब्राह्मणमान्य स्थान प्राप्त करते हैं, ठीक इसी प्रकार जैसे जैनग्रन्थों में कृष्ण एक भावी तीर्थकरके रूपमें स्थान पाते हैं । इस प्रकार पहले के ब्राह्मणसाहित्य में स्थान प्राप्त न कर सकनेवाले बुद्ध धीमे धीमे इस साहित्य में एक अवतार के रूपमें प्रतिष्ठा प्राप्त करते हैं, जब कि स्वयं बुद्ध भगवानके समकालीन और बुद्ध के साथ ही साथ ब्राह्मण-संस्कृति के प्रतिस्पद्ध, तेजस्वी पुरुषके रूपमें एक विशिष्ट सम्प्रदायके नायक पदको धारण करनेवाले, इतिहास प्रसिद्ध भगवान महावीर
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