Book Title: Dharmveer Mahavir aur Karmveer Krushna
Author(s): Sukhlal Sanghavi
Publisher: Aatmjagruti Karyalay

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Page 5
________________ धर्मवीर महावीर और कर्मवीर कृष्ण। देवीपूजामें से मनुष्यपूजाका क्रमिक विकास । अन्य देशों और अन्य प्रजाकी भाँति इस देश में और प्रार्यप्रजामें भी प्राचीनकालसे क्रियाकाण्ड और वहमोंके राज्यके साथ ही साथ थोड़ा बहुत प्राध्यात्मिक भाव मौजूद था। वैदिक मंत्र-युय और ब्राह्मणयुगके विस्तृत और जटिल क्रियाकाण्ड जब यहाँ होते घेतब भी आध्यात्मिक चिन्तन,तपका अनुष्ठान और भूत-दयाकी भावना, ये तत्त्व मौजूद थे, यद्यपि थे वे अल्प मात्रामें । धीरे धीरे सद्गुणोंका महत्व बढ़ता गया और क्रियाकाण्ड तथा वहमोंका राज्य घटता गया। प्रजाके मानसमें, ज्यों ज्यों सद्गुणोंकी प्रतिष्ठा स्थान प्राप्त करती गई, त्यों-त्यों उसके मानससे क्रियाकाण्ड और वहम हटते गये । क्रियाकाण्ड और वहमोंकी प्रतिष्ठाके साथ, हमेशा अर. श्य शक्तिका सम्बन्ध जुड़ा रहता है । जबतक कोई अदृश्य शकि मानी या मनाई न जावे (फिर भले ही वह देव, दानव, दैत्य, भूत; पिशाच या किसी भी नामसे कही जाय) तब तक क्रियाकाण्ड और वहम न चल सकते हैं और न जावित ही रह सकते हैं । अतएव क्रियाकाण्ड और वहमोंके साम्राज्यके समय, उनके साथ देवपूजा अनिवार्य रूपसे जुड़ी हुई हो, यह स्वाभाविक है। इसके विपरीत सद्गुणोंकी उपासना और प्रतिष्ठाके साथ किसी अदृश्य शक्तिका नहीं वरन् प्रत्यक्ष दिखाई देनेवाली मनुष्य व्यक्तिका सम्बन्ध होता है। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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