Book Title: Dharmveer Mahavir aur Karmveer Krushna Author(s): Sukhlal Sanghavi Publisher: Aatmjagruti Karyalay View full book textPage 8
________________ और बुद्ध आदिके उपासकोंने उन्हें शुद्ध मनुष्य के स्वरूप में ही चित्रित किया, फिरभी उनके जीवनके किसी न किसी भागके साथ अलौकिक दैवी सम्बन्ध भी जोड़ दिया । ब्राह्मण-संस्कृति प्रात्मतत्त्वको एक और अखण्ड मानती है अतः उसने राम और कृष्णके जीवनका ऐसा चित्रण किया जो अपने मन्तव्यसे मेल रखनेवाला और साथही स्थूल लोगोंकी देवो पूजाकी भावनाको भी सन्तुष्ट करनेवाला हो। उसने परमात्मा विष्णुके ही राम और कृष्णके रूप में अवतार लेनेका वर्णन किया । परन्तु श्रमण संस्कृति आत्मभेदको स्वीकार करती है और कर्मवादी है, अतः उसने अपने तत्त्वज्ञानके अनुरूप ही अपने उपास्य देवोंका वर्णन किया और जनताकी दैवीपूजाकी हवस मिटाने के लिए अनुचर और भक्तोंके रूप में देवोंका सम्बन्ध महावीर और बुद्ध आदि के साथ जोड़ दिया। इस प्रकार दोनों संस्कृतियोंका अन्तर स्पष्ट है । एक में मनुष्यपूजाका प्रवेश हो जाने पर भी दिव्य अंशही मनुष्यके रूपमें अवतरित होता है अर्थात् आदर्श मनुष्य अलौकिक दिव्य शक्तिका प्रतिनिधि बनता है और दूसरी संस्कृतिमें मनुष्य अपने सद्गुण प्राप्तिके लिए किए गये प्रयत्नसे स्वयमेव देव बनता है और जनतामें माने जाने वाले देव उस आदर्श मनुष्यके सेवक मात्र हैं, और उसके भक्त या अनुचर बनकर उसके पीछे पीछे फिरते हैं। चार महान् आर्य-पुरुष । महावीर और बुद्धकी ऐतिहासिकता निर्विवाद है-उसमें सन्देह को जरा भी अवकाश नहीं है, जब कि राम और कृष्णके विषयमें इससे उलटी ही बात है। इनकी ऐतिहासिकताके विषयमें जैसे प्रमाणोंकी आवश्यकता है वैसे प्रमाण उपलब्ध नहीं हैं। अतः इनके Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.comPage Navigation
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