Book Title: Dharmbindu Author(s): Haribhadrasuri, Hirachand Jain Publisher: Hindi Jain Sahitya Pracharak Mandal View full book textPage 7
________________ भालोचना और प्रवाहशील, भाषाप्रभुत्व भारतीय साहित्यके इतिहासमें सुवर्णाक्षरोंसे उल्लिखित है, जिससे आधुनिक विद्वान आश्चर्य पुलकित हो उठते है। हर्मन जेकोबी जैसे पाश्चात्य विद्वानने उनकी 'समराइचकहा ' नामक ग्रन्थका संपादन किया है, जिसकी प्रस्तावनामें हरिभद्रसूरिजीके लिये आपने जो लिखा है वह इस बातको प्रमाणित करता है "हरिभद्रसूरिने तो श्वेतांबरोंके साहित्यको पूर्णताके ऊचे शिखर पर पहुंचा दिया है।" इस अभिप्रायमे उनकी ज्ञानगरिमासे वे जैनशासनके महान स्तम्भरूप दिखाई दे रहे हैं। ऐसे प्रकाड पुरुषके चरितके विषयों बहुत कम सामग्री उपलब्ध है और जो है उसमें भी ऐकम य नहीं है। तो भी प्रबन्धग्रन्थोमेंसे जो कुछ प्रामाणिक सूचनायें मिलती है उसको बटोर कर, उस पर एक विहंगात्मक दृष्टि डाल देना अवसरोचित है। उनका जन्मस्थान और परिचय 'कथावली 'कारके कथन मुजब पिर्वगुइ नामकी कोई ब्रह्मपुरीमें उनका जन्मस्थान था। उनके पिता का नाम शंकरभट्ट और माताका नाम गंगादेवी था। उनका खुदका नाम हरिभद्र भट्ट था। जातिसे वे अग्निहोत्री ब्राह्मण थे। वाश्यकालमें जन्मगत संस्कारोसे विद्याओं का अध्ययन करनेमें वे बडे उत्साही थे। उन्होंने क्रमशः चौदह विद्यायें प्राप्त कर ली थी।Page Navigation
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