Book Title: Dharmbindu Author(s): Haribhadrasuri, Hirachand Jain Publisher: Hindi Jain Sahitya Pracharak Mandal View full book textPage 5
________________ उपोद्घात - यह प्रकरण ग्रन्थ आ० हरिभद्रसूरिजीने बनाया है। उसका नाम है धर्मविन्दु । वास्तवमें देखा जाय तो आज यह ग्रन्थ ' गागरमें सागर' सा मालम पडता है। आ० हरिभद्रसूरिजीके सामने धर्मका मान-प्रमाण कितना होगा यह उनके दिये हुए नामसे ही प्रगट हो जाता है। जो कुछ हो, आज तो यह ग्रन्थ हमारे सामने बिन्दुमें ही सागरसा मालूम देता है और उसको देखते हुए आ० मुनिचन्द्रसूरिजीको उस पर टीका लिख कर इस ग्रन्थका गांभीर्य समझाना पड़ा है। आठ अध्यायोमे विभाजित यह सूत्रबद्ध ग्रन्थ नतीजीवन के लिये पूरा और गहरा उपदेश देता है। प्रथम गृहस्थोकी आचारविधि सामान्य और विशेष रूपसे दिखाकर साधुजीवनकी सामान्य और विशिष्ट विधि बता दी है। मनुष्यमें कहां कौनसी ऊणप है उसका व्रतपालनके लिये मानो अपने सामने एक आदर्श अरीसा घर दिया है। गृहस्थ और साधुजीवनकी छोटी-मोटी चर्या पर भी उन्होने बुछ उठा नहीं रखा । सचमुचमें कहा जाय तो यह ग्रन्थ प्रतिदिन, प्रतिक्षण रमरण में रखने योग्य पाट्य ग्रन्थ है । इसलिये मै तो जिसमें सागरसे भी बडे धर्मको विन्दुरूपसे ठान लिया है और जिसकेPage Navigation
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