Book Title: Dharmanand Shravakachar Author(s): Mahavirkirti Acharya, Vijayamati Mata Publisher: Sakal Digambar Jain Samaj Udaipur View full book textPage 7
________________ था। परिचय आचार्य महावीरकीर्ति जी आपका जन्म वैशाख कृष्णा ९ विक्रम संवत् १९६७ को फिरोजाबाद में हुआ। माता का नाम बून्दा देवी और पिता का नाम रतनलाल था । पद्मावती पुरवाल जाति थी, आदर्शमय जप-त्याग, तपोमय जीवन से संलग्न थे। न्यायतीर्थ, आयुर्वेदाचार्य, ज्योतिषाचार्य आदि की परीक्षाएँ उत्तीर्ण की । महेन्द्रसिंह नाम था। ___बत्तीस वर्ष की आयु में निर्वाण दीक्षा परम पूज्य मुनि कुञ्जर, समाधि-सम्राट, दक्षिण भारत के वयोवृद्ध, दिगम्बर संत, आदर्श तपस्वी, अप्रतिम उपसर्ग विजेता, महामुनि आचार्य शिरोमणि श्री आदिसागरजी महाराज अंकलीकर से फाल्गुन शुक्ला ग्यारस, १७ मार्च सन् १९४३ को ऊदगांव में ली। मुनि महावीरकीर्ति नाम से जानने लगे। आपने प्रबोधाष्टक, प्रायश्चित्त विधान, चतुर्विंशति स्तोत्र, शिवपथ, वचनामृत आदि ग्रन्थों की रचनाएँ तथा संस्कृत टीकायें की है। आपको अपने गुरु का आचार्य पद इसी चातुर्मास में प्राप्त हुआ। तीर्थंकर प्रकृति की कारणीभूत गुरुदेव प्रातः स्मरणीय, विश्ववंद्य, देवाधिदेव, कलिकाल तीर्थकर, चारित्र चक्रवर्ती, आचार्य शिरोमणि आदिसागरजी अंकलीकर, आचार्य वीरसागरजी, मुनि धर्मसागरजी आदि अनेक साधुओं को समाधि मरण कराने में हस्त सिद्ध रहे हैं। आपके मुख्य शिष्य आचार्य विमलसागरजी, पट्टाचार्य सन्मतिसागरजी, गणधराचार्य कुन्थुसागरजी, स्थविराचार्य संभवसागरजी, गणिनि आर्यिका विजयमतिजी, क्षुल्लक शीतलसागरजी आदि हैं। घनरूप शीत के कारण आपका समाधि परण माघ कृष्णा ६ गुरुवार ६ जनवरी, सन् १९७२ को मेहसाना (गुजरात) में हो गया। आचार्य पद में आपके गुरु ने सम्मेद शिखर का प्रथम दर्शन, आपका प्रथम चातुर्मास एवं आपके शिष्य ने प्रथम समाधि मरण किया है।Page Navigation
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