Book Title: Daulat Jain Pada Sangraha
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 14
________________ १२ दौलत - जैनपदसंग्रह | > भारी || मत० ॥ १ ॥ रामा मा, मा धामी, सुत पितु, सुताश्वस, अवतारी । को अचंभ जहां श्राप थापके, पुत्र दशा विस्तारी || मत राचो० ॥ २ ॥ घोर नरक दुख ओर न छोर न लेश न सुख विस्तारी । सुरनर प्रचुर विपयजुर जारे, को सुखिया संसारी ॥ मताची० ॥ ३ ॥ मंडल है खंडल छिनमें, नृप कृमि सघन भिखारी । जा सुन विरह मरी है वाघिनि, ता सुत देह विदारी । मदराचो० ॥ ॥ ४ ॥ शिशु न हिताहितज्ञान तरुण उर, पढनर्दहन पर जारी । वृद्ध भये विकलांगी थाये, कौन दशा सुखकारी ॥ मत राचो० ॥ ५ ॥ यौं थसार लख छान भव्य झट, भये मोग्मचारी । यातें होउ उदास 'दौल' थत्र, भज जिन पति जगतारी ॥ मत० ॥ ६ ॥ १६ नित पीड्यौ घोधारी, जिनवानि सुत्रापमं जानके, निव पी० ॥ टेक ॥ चीरमुखारविंदतें प्रगटी, जन्मजरागंद टारी । गौतमादिगुरु-उरघर व्यापी परम सुरुचि करतारी ॥ नित• ॥ १ ॥ सलिले समान कलिलमलगंजन वुत्रमनरंजनहारी । भंजन विभ्रमधूलि प्रभंजन, मिध्याजलद निवारी १ स्त्री । २ बहिन । ३ कुत्ता | ४ देव । ५ लट | ६ कामाग्नि । ७ जैनशास्त्रोंको ! ८ अमृत समान । ९ महावोर म्वानीके मुखकमलले । १० रोग | ११ जलके समान । १२ पापरूपी मैलकों नष्ट करनेवाली ।

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