Book Title: Daulat Jain Pada Sangraha
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 31
________________ दौलत-जनपदसंग्रह। मात कहो ना । जामन मरन अनंततनो तुम जानन माहि चिप्पो ना मोहि० ॥१॥विषय विरसरस विषम भख्यो में, चख्यौ न ज्ञान सलोना। मेरी भूल मोहि दुस देवे, कर्मनिमित मलौ ना ॥ मोहि० ॥२॥ तुम पदकंज घरे हिरदै जिन, सो भवताप तप्यौ ना । सुरगुरुहके वचनकरनेकर तुम जसगगन नेप्यों ना ॥ मोहि० ॥ ३॥ गुरुदेव कुश्रुत सेये मैं, तुम मत हृदय परयो ना। परम विराग शानमय तुम जाने विन काज सरयौ ना ।। मोहि० ॥ ४॥ मोसम पतित न और दयानिधि, पतिततार तुम सौ ना। दौलतनी अरदास यही है फिर भनवास बसौं ना ॥ भोहि ॥५॥ मैं आयौ, जिन शरन तिहारी । मैं चिरदुखी विमावमावत, स्वाभाविक निधि पाप विसारी ।। मैं० ॥१॥ रूप निहार घार तुम गुन सुन, वैन होत भवि शिवमगचारी । यौँ मम कारजके कारन तुम, तुमरी सेव एक उर धारी ॥ मैं० ॥२॥ मिल्यो भनन्त जन्म अवसर, अब विनऊ हे मव. सरतारी। परम इष्ट अनिष्ट करपना, दौल को मट मेट हमारी | मैं० ॥३॥ १बनापी किरणों मपया हामोरे ।२मापा नहीं गया। ३ पापी ४ पापिनोगतारनेपाडा ५ मनी ।

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