Book Title: Daulat Jain Pada Sangraha
Author(s):
Publisher: ZZZ Unknown
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दौलत-जनपदसंग्रह।
___ ध्यानपान पानि गहि नासी, वेसठ प्रकृति भी। शेष पंचासी लाग रही है, ज्यौं जेवरी जरी ॥ ध्यानाटेका। दुठ अनंगमातंगभगार, है प्रवलंगहरी । जा पदभक्ति भक. जनदुख-दावानल-मेयझरी ।। ध्यान० ॥ १ ॥ नवल धवल पले सोहै कलमें, दुधपत्याधि टरी । हलत न पलक अलक नख बढत न गति नभमाहि करी ॥ ध्यान ॥२॥ जा विन शरन मरन जर घरघर, महा असात भरी। दौल तास पद दास होत है, पास मुक्तिनगरी ॥ ध्यान० ॥३॥
दीठा भागनः जिनपाला, मोहनाशनेवाला । दीग ॥ टेक ।। सुभग निशक रागविन यात, वसन न आयुध बाला॥ मोह० ॥१॥ नास ज्ञान युगपत भासत, सकल पदारथमाला ॥ मोह० ॥२॥ निजमें लीन हीन इच्छा पर, हितमितवचन रसाला । मोह० ॥३॥ कखि जाकी छवि आतमनिधि निज, पावत होत निहाला । मोह० ॥४॥ दौल जासगुन चिंतत रत है, निकट विकट भवनाला॥ मोह०॥५॥ १ म्यानरूपी तलवार ।२वातिया कमौकी प्रकृतियें। ३ कामदेवरूपी उस्ती को मारनेवाले। ४ बलवान सिंह । ५मान रुधिर । शरीरमें। ८ सम्पग्धसे लगाकर बारह गुणस्थानकके 'जीवोंको मिनया है. उनका रसास्त्री ।
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