Book Title: Daulat Jain Pada Sangraha
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

View full book text
Previous | Next

Page 45
________________ दौलत-जैनपदसंग्रह। मान० ॥२॥ भोगनकी भमिलाप हरनको, त्रिजगमंपदा योरी। यात झानानंद दौल अब, पियो पियप कटोरी; मिटै भवव्याधि कठोरी ॥३॥ छांटि दे या वृघि मोरी, वृथा तनसे गति जोगे। छाडि ॥ टेक। यह पर है न रहै यिर पोपत, सफल कुपही मोरी । यासौं ममता कर अनादित, बंघो ककी होग, सई दुख जलधि हिलोरी ॥ छोडि दे या बुधि मोरी । च्या . ॥१॥ यह जद है तू चेतन यों ही, अपनावत बरनोरी। सम्यकदर्शन जान चरण निधि, ये हैं संपत तोरी, मदा दिलसो शिवगोरी ।। छादिदे या युधि मारी ॥ध्या०॥RIT मुखिया मये सदीर जीव जिन, यासौं ममता तोरी | दोस सील पह लीजे पीने, मानपियूष कटोरी, मिट पर कठोरी ॥ छांडि दे या बुधि मोरी ॥ या० ॥३॥ माम् हिन तेरा, सुनि ही मन मेरा, पाएं ॥ टेक नरनरकादिक नारौं गनिमें, भटक्यो तू अधिकानी! पापायति में प्रीति करी निल परनजि नाहिं पिछानी. महे दश क्यों न धनेगा। माम् ॥१॥ गुरु देव पय पंमि ,

Loading...

Page Navigation
1 ... 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83