SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 34
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३२ दौलत-जनपदसंग्रह। ___ ध्यानपान पानि गहि नासी, वेसठ प्रकृति भी। शेष पंचासी लाग रही है, ज्यौं जेवरी जरी ॥ ध्यानाटेका। दुठ अनंगमातंगभगार, है प्रवलंगहरी । जा पदभक्ति भक. जनदुख-दावानल-मेयझरी ।। ध्यान० ॥ १ ॥ नवल धवल पले सोहै कलमें, दुधपत्याधि टरी । हलत न पलक अलक नख बढत न गति नभमाहि करी ॥ ध्यान ॥२॥ जा विन शरन मरन जर घरघर, महा असात भरी। दौल तास पद दास होत है, पास मुक्तिनगरी ॥ ध्यान० ॥३॥ दीठा भागनः जिनपाला, मोहनाशनेवाला । दीग ॥ टेक ।। सुभग निशक रागविन यात, वसन न आयुध बाला॥ मोह० ॥१॥ नास ज्ञान युगपत भासत, सकल पदारथमाला ॥ मोह० ॥२॥ निजमें लीन हीन इच्छा पर, हितमितवचन रसाला । मोह० ॥३॥ कखि जाकी छवि आतमनिधि निज, पावत होत निहाला । मोह० ॥४॥ दौल जासगुन चिंतत रत है, निकट विकट भवनाला॥ मोह०॥५॥ १ म्यानरूपी तलवार ।२वातिया कमौकी प्रकृतियें। ३ कामदेवरूपी उस्ती को मारनेवाले। ४ बलवान सिंह । ५मान रुधिर । शरीरमें। ८ सम्पग्धसे लगाकर बारह गुणस्थानकके 'जीवोंको मिनया है. उनका रसास्त्री । - - - - -
SR No.010037
Book TitleDaulat Jain Pada Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages83
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy