Book Title: Daulat Jain Pada Sangraha
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 41
________________ दौलत-जैनपदसंग्रह। प्रथम इन्द्रन, श्रीनिनेन्द्र पषाये। द्वितीय पत्र दिय वृतिय, तुरिय-हरि, मुद परि घमर डराये। शेषेचक नयशन्द करत नम, संप सुरास छाये । पांडुशिला भिन यार नची सचि दुन्दभिकोटिक पाये । वारी० ॥ ४ ॥ पनि सुरेशने श्रीजिनेवको, जन्मनवन शुम ठानो । हेमाम्म सुरहायहि हायन, तीरोदधिजल आनो । बर्दनउदरअवगाह एक चौ, बसु यो जन परमानो । सहसभाटकर करि हरि मिनसिर , दारत जयधुनि गाज । बारी०॥५॥ फिर हरिनारि सिंगार स्वामितन, जजे सुरा जस गाये । पूवली विधिकर पयान मुद, ठान पिता पर लाये । मनिमय आंगनमें कनकासन, पै श्रीमिन पपराये । तांडव नृत्य कियो सुरनायक, शोमा सकल समान । वारी० ॥६॥ फिर हरि जगगुरुपितर तोप गान्तेअघो" जिन नामा । पुत्र जन्म उत्सार नगरमें, कियौ भूर अभिरामा । साध सकळ निजनिजनियोग सुर, असुर गये निनामा । त्रिपैदघारि जिनचारुचरनकी, दौलत करत सदा, जै । बारी० ॥ ७॥ •एशान इन। सानकमार और माहेन्द । ३ वाकोके पर इन्द्रा ४ अमेर। ५ इन्द्राणी । ६ सोनेके बलमोंके मुस एक योजन, उदर चार योजन भारजाहराई माठ योजन यो। ७ इन्द्राणी। पूनकी । जिन भगवान पिताको स्तुति करके। १० शान्तिनायनाम । १ घोषणा करके १२ सीकरल. चक्रातिर भए कामठेवत्व इन तीन पदोंके भारी।

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