Book Title: Daulat Jain Pada Sangraha
Author(s):
Publisher: ZZZ Unknown
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दौलत-जैनपदसंग्रह।
चलि मखि देखन नाभिरायश, नाचन हरि नया चल० ॥ टेक ॥ भदभुत ताल पान गुमलययुत, चत राग पटवा। चलि सखि० ॥१॥ मनिमय नूपुरादिभूपनदुति, युत सुरंग पटवा । हरिकर नखन नखन सुरतिय, पगफेरत कटा। चलि० ॥२॥ फिभर करघर धान बजावत,
गवत लय मंटवा। टौलव ताहि लखें चख तपते, समत शिववेटवा । पलि० ॥३॥
आज गिरिसाज निहारा, पनमाग हमारा । श्रीमम्मेद नाम हैजाको, भूसतीग्य भारा ।। भाज गिरि० ॥ टेक ।। जहां पीस जिन मुक्ति पधारे, अवर मुनीश अपारा। आरजभुमिशिग्वामनि सोह, सुरनरमुनि-मनप्पारा || भाज गिरि० ॥१॥ तह घिर योग धार योगीसुर, निज-परतव विचारा। निज स्वभावमें लीन होयफर, मकल विभाव निवारा ।। भाज गिरि० ॥ २ जाहि जजन भवि भावनत नव, भवमवातक टारा । जिनगुन धार धर्मधन संचो, मवदारिदहरतारा ॥ भान गिरि० ॥३॥ इक नम नवक वर्ष (१९०१) माधवदि, चोदश वासर मारा । माय नाय जुन माय दोकने, जप जय शन्द चारा। भान गिरि०ा
इन्दरूरी मट । २ गाने है । | ४ पटे। ५एर हायों नसों पर। कमर । शीघ्र हो। नेत्र । मोसमा ।
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