Book Title: Daulat Jain Pada Sangraha
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 20
________________ दौलत-जैनपदसंग्रह। पमा० ॥३ ॥ जाकी महिमाके वरननसों, सुरगुरु बुद्धि थकावन है ।दौल अल्पमतिको कहवो जिमि, शशकगिन्दि धकावन है।पमा० ॥४॥ । चन्द्रानन: जिन चन्द्रनाथके, चरन चतुर-चित ध्यावतु हैं। कर्म-चक्र-चकचूर चिदातम, चिनमूरत पद पावतु हैं । चन्द्रा० ॥ टेक ॥ ___ हाहा-हूहू-नारद-तुंबर, जासु अमल जस गावतु हैं। पमा सची शिवा श्यामादिक, करधर बीन बजावतु हैं। चन्द्रा० ॥१॥ विन इच्छा उपदेश माहिं हित, अहित जगत दरसावतु हैं । जा पदतट सुर नर मुनि घट चिर, विकट विमोह नशावतु हैं । चन्द्रा० ॥ २ ॥ जाको चन्द्र बरन तनदुतिसों, कोटिक सूरै छिपावतु है । आत 'मजोत उदोतमाहिं सब, ज्ञेय अनंत दिपावतु है ।। चन्द्रा० ॥३॥ नित्य-उदय अकलंक अछीन सु, मुनि'उर्दू-चित्त रमावतु हैं । जाकी ज्ञानचन्द्रिका लोका,'लोक माहिं न समावतु हैं ।। चन्द्रा० ॥ ४ ॥ साम्यसिंधु बर्द्धन जर्गनंदन, को शिरं हरिगन नाचत हैं। संशप विभ्रम १ इन्द्रकी बुद्धि । २ जैसे खर्गोश सुमेरुको धकेलना चाहे । ३ हाहा, 'नारद और सुबर ये गंधर्व देवोंके भेद हैं । ४ देव मनुष्यों के यका। ५ सूर्य । '६ पदाये । . तारा । ८ समताकमी समद्रको बहानेवाला। भगको भानंदित करनेवाला।

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