Book Title: Daulat Jain Pada Sangraha
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 25
________________ दौलत - चैनपदसंग्रह | ૨૨ पद-नमित, नित अनमित यतिसारं । रमीअनंतकंत अंतर्ककृत, अंत जंतु हिवकारं ॥ जय० ॥ २ ॥ फेदे चंदनाकंदन दादुरदुरित तुरित निर्धारं । रुद्ररेचित व्यतिरुद्र उपद्रव, - पवन अद्रिपदि सारं ॥ जय० ॥ ३ ॥ अतीत भचित्य सुगुन तुम, कहत लडत को पारं । हे जगमौल दौ तेरे क्रम, नमें शीस कर धारं ॥ जय० ॥ ४ ॥ २९ उरग - सुरग- नरईश शोस rिs, आतपत्र त्रिधरे | कुंदकुसुमसम चपर अमरगन, ढारत मोदभरे ॥ उरग● ॥ टेक ॥ तरु अशोक जाको अवलोकत, शोकथोक उजरे । पारजातसंतानकादिके, बरसत सुमन ररे ॥ उरग० ॥ १ ॥ सुमणिविचित्र पीठअंबुजपर, राजत जिन सुथिरे । वर्णविगत बाकी धुनिको सुनि, मवि भवसिंधुतरे ॥ उरग० ॥ २ || साढ़े बारह कोड़ जातिके, वाजत तूर्व खरे । भामंदलकी दुविखंडने रविश्वशि मंद करे । उरग० ॥ ३ ॥ ज्ञान अनंत अनंत दर्श बल, शर्म अनंत भरे । करुणामृतपूरित पद जाके, दौलत हृदय घरे || उरग० ॥ ४ ॥ १ अनन्त मोक्षलक्ष्मी के पति । २ यमराजका भी किया है अन्य जिन्होंने ऐसे | ३ चंदनासती के फंद काटनेवाले । ४ समवशरण में पुष्प लेकर जानेवाले मेटकके पाप । ५ नामक दैत्यके किये हुए। ६ सनत | जगन्मुकुट | ८ चरण ९ छत्र १० तीन परे । ११ कुन्द फूल | १२ जनवरी । १३ वादे ।

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