Book Title: Daulat Jain Pada Sangraha
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 22
________________ २० दौलत - जैनपदसंग्रह | वर, जस उजासको पार न हैं । भक्तिमारतें नमें दौलके, चिर- विभाव-दुख टारन हैं ॥ जय० ॥ ७ ॥ २५ कुंथुनके प्रतिपाल कुंथ जग, तार सारगुनधारक है। बर्जितेग्रन्थ कुपंथविसर्जित, अर्जितपंथ अमारक हैं ॥ कुन्युनके० ॥ टेक ॥ जाकी समवसरनवहिरंग, - रमा गनधार अपार कहैं । सम्यग्दर्शन- दोष-चरण- अध्यात्म-रमाभरमारक है || कु० ||१|| दशया-धर्म- पोर्तेकर भव्यन, को भवसागर तारक हैं। वरसपाधि-वन धन विभावरज, पुंजनिकुजनिवारक हैं | कुंथु० || २ || जासु ज्ञाननभर्मे अलोकजुत- लोक यथा इक तारक हैं। जासु ध्यानहस्तावलम्ब दुख-कूपविरूप- उधारक हैं || कुं० ॥ ३ ॥ तज ईखंडकपला मस अमला, तपकमला आगारक हैं । द्वादशसभा - सरोजसूर भ्रम -तरुअंकुर उपारक हैं ॥ कुंथुनके० ॥ ४ ॥ गुणअनंत कहि लहत अंत को १ सुरगुरुसे बुध हार कहैं । नमें दौल हे कृपाकंद, भवद्वंद डार बहुवार कहें ॥ कुंथुन० ॥ ५ ॥ २६ पास अनादि अविद्या मेरी, हरन पीस परमेशा है । १ छोटे २ जीवोंके भी । २ परिमहरहित । ३ अहिंसक पथके अर्जन करनेवाले ! ४ गणधरदेव । ५ दशलक्षण धर्मरूपी जहाज करके । ६ व खंडकी लक्ष्मी । अनादि अवेवारूपी फांसी । ८ पार्श्वनाथ भगवान -

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