Book Title: Dashvaikalik Sutra
Author(s): Jayanandvijay
Publisher: Guru Ramchandra Prakashan Samiti

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Page 356
________________ श्री दशवकालिकसूत्र भाषांतर - भाग ३ परिशिष्ट - १ ६-६९ सुचगाहा गाईको विभूसा इत्थिसंसग्गी ८-५७ विभूसावत्तियं चेयं विभूसावत्तियं भिक्खू ६-६५ विरूढा बहुसंभूया विवत्ती अविणीयस्स. ९-२-२१ विवत्ती बंभचेरस्स ६-५७ विवित्ता य भवे सेन्जा ८-५३ विविहगुण-तवोरये य निच्च ९-४-४ विसएसु मणुण्णेसु ८-५९ विसमतो इमं चिंते ५-१-९४ ا اللي सुचगाहा गाहको सव्वमेयमणाइण्णं ३-१० सव्वमेयं वइस्सामि ७-४४ सव्वुक्कस्सं परग्धं वा ७-४३ साणं सूर्य गाविं ५-१-१२ साणी-पावारपिहियं ५-१-१८ साहवो तो चियत्तेण ५-१-१५ सालुयं वा विरालियं ५-२-१८ साहट्ट निक्खिवित्ता णं ५-१-३० सिक्खिऊण भिक्खेसणसोही ५-२-५० सिणाणं अदुवा कर्क सिणेहं पुप्फसुहमं ८-१५ सिया एगइयो लद्धं लोभेण ५-२-२१ सिया एगइयो ललु विविहं ५-२-३३ सिया य गोयरग्गगओ ५-१-८३ सिया य भिक्खु इच्छेन्जा ५-१-८७ सिया य समणद्वाए ५-१-४० सिया हु सीसेण गिरि पि भिदे ९-१-९ सिया हु से पावय णो डहेज्जा ९-१-७ सीओदगं न सेवेज्जा सीओदगसमारंभे सुकडे त्ति सुपक्के त्ति सुक्कीयं वा सुविक्कीयं सुयं वा जइ वा दिवं सुद्धपुढवीए न निसिए सुरं वा मेरगं वा वि ५-२-३६ सुहसायगस्स समणस्स ४-२६ से गामे वा नगरे वा ५-१-२ से जाणमजाणं वा ८-३१ सेज्जायरपिंडं च सेज्जा-निसीहियाए से तारिसे दुक्खसहे निइंदिए. ८-६४ सोच्चा जाणइ कल्लाणं ४-११ सोच्चाण मेहावि सुभासियाई ९-१-१७ सोवच्चले सिंधवे लोणे संखडिं संखडिं बूया . . ७-३७ संघटइत्ता कारणं ९-२-१८ संजमे सुद्रिअप्पाणं ३-१ संतिमे सुहमा पाणा घसासु ६-६१ संतिमे सुहुम पाणा तसा , ६-२३ संथारसेज्जाऽऽसण भत्त-पाणे ९-३-५ संपते भिक्खकालम्मि ५-१-१ . संवच्छरं वाऽवि परं पमाणं चू.२-११ • संसद्रेण हत्येण ५-१-३६ सका सहिउं आसाए कंटगा ९-३-६ सखुडग-वियत्ताणं सज्झाय-सज्झाणरयस्स ताइणो ८-६३ संनिहिं च न कुव्वेन्जा८-२४ मनिही गिहिमत्ते य ३-३ सइ काले चरे भिक्खू ५-२-६ 'सओवसंता अममा अकिंचणा ६-६८ समणं माहणं वा वि ५-२-१० समाए पेहाए परिव्ययंती २-४ समावयंता वयणाभिघाया समुदाणं चरे भिक्खू ५-२-२५ सम्मइमाणी पाणाणि ५-१-२९ सम्मद्रिी सया अमूढे १०-७ सयणाऽऽसण वत्थं वा . ५-२-२८ सवकसुद्धी समुपहिया ७-५५ सव्वजोवा वि इच्छति सव्वत्थुवहिणा बुद्धा ६-२१ सव्वभूयऽप्पभूयस्स सुचगाहा गाईको हत्थसंजए पायसंजए १०-१५ हे हो हले ति अत्रे त्ति ७-१९ होज्ज कद्वं सिलं वावि ५-१-६५ गधात्मक अध्ययन अहावरे चउत्थे भंते महव्वए अहावरे छद्रे भंते वए अहावरे तच्चे भंते महव्वए अहावरे दोच्चे भंते महव्वए अहावरे पंचमे भंते महव्वए आउ चित्त मंतमक्खाया इच्चेसिं छहं जीवनिकायाणं इमा खलु सा छज्जीवणिया इमे खलु ते थेरेहि इह खलु भो पव्वइएणं कयरा खलु सा छज्जीवणिया कयरे खलु ते थेरेहिं चउव्विहा खलु आयार समाही चउव्विहा खलु तव समाही चउव्विहा खलु विणय समाही चउव्विहा खलु सुय समाही तेउ चित्तमंतमक्खाया पढमे भंते महव्वए पुढवि चित्तमंतमक्खाया भवइ य एत्थ-जयाय भवइ य एत्थ-जिणवयण भवइ य एत्थ-नाण भवइ य एत्थ-पेहेइ भवइ य एत्थ-विविह वणस्सइ चित्तमंतमक्खाया वाउ चित्तमंतमक्खाया सुयं मे आउसं-इहखलु छ. सुयं मे आउसं-इहखलु थे. से भिक्खुवा-अगणिं वा से भिक्खुवा-उदगं वा से भिक्खुवा-कोडं वा से भिक्खुवा-पुढविं वा से भिक्खुवा-बीएसु वा से भिक्खुवा-सिएण वा ८-५ ९-३-८ ५-२-२ हंदि! धम्म-उत्थ-कामाणं हत्थं पायं च कायं च हत्थ-पायपडिच्छित्रं ८-४५ ८-५६ ૧૧૬

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