Book Title: Dashkarm Paddhati
Author(s): Hariprasad Bhagirath
Publisher: Hariprasad Bhagirath

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Page 23
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir ०क० मकर्मणिकताकतावेक्षणरूपब्रह्मकर्मकर्तुममुकगोत्रममुकशर्माणंब्राह्मणमेभिःपुष्प ।। पद्ध० चंदनतांबूलवासोभिर्ब्रह्मत्वेनत्वामहंटणइतिब्रह्माणंटणुयात्ओंटतोऽस्मीतिप्रतिवच । "नं यथाविहितंकर्मकुर्वितियजमानेनोक्ते करवाणीतितेनोक्ते अग्नेर्दक्षिणतःशुद्ध । मासनंनिधायतदुपरिप्रागग्रान्कुशानास्तीर्यअग्निंप्रदक्षिणंकारयित्वाब्रह्माणमुदङ् | मुखंतत्रोपवेश्यास्मिन्नन्नप्राशनहोमकर्मणित्वम्मेब्रह्माभवेत्यभिधाय ॐभवानीति ।। तेनोक्तेप्रणीतापापुरतःकृत्वावारिणापरिपूर्यकुशैराच्छायब्रह्मणोमुखमवलोक्याग्ने| रुत्तरतोनिदध्यात् ततःपरिस्तरणंबहिषश्चतुर्थभागमादायाग्नेयादीशानांतंब्रह्मणोऽग्नि पर्यंतनैऋत्याद्वायव्यांतंअग्नितःप्रणीतापर्यंतम् ततोऽग्नेरुत्तरतः पश्चिमदिशिपवित्रच्छे । ॥१०॥ दिनार्थकुशवयंपवित्रकरणार्थसाग्रमनंतर्गर्भितकुशपत्रद्वयं प्रोक्षणीपात्रं आज्यस्था For Private and Personal Use Only

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