Book Title: Dashkarm Paddhati
Author(s): Hariprasad Bhagirath
Publisher: Hariprasad Bhagirath
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पद्ध०
०० तनिधानादिच्छेदनवर्जसर्वपूर्ववदेवच्छेदनंतूष्णीमेवलूनकुशपत्रत्रयकेशानांगोमय ||
पिंडोपरिधारणंच ततउत्तरभागजूटिकायांप्रक्षालनादिक्षुरसंयोजनांतेषुपूर्ववत्तत्त । ॥१०॥
न्मत्रंप्रयोज्यप्रथमभागजूटिकायांछेदनेमंत्रः ॐयेनभूरिश्वरादिवज्याक्कपश्चाद्विसू । र्य तेनतेवपामिब्रह्मणाजीवातवेजीवनायसुश्लोक्यायस्वस्तये ततः केशान्गोमय । पिंडोपरिनिदध्यात् ततोस्वशिष्टभागद्वयकुशपत्रत्रयेकेशांतनिधानादिच्छेदनवर्जस ।।
पूर्ववदेवच्छेदनंतष्णीं गोमयपिंडोपरिधारणमपि ततःसमस्तशिरःप्रक्ष्याल्यत्रिके। शोपरिसुरंप्रदक्षिणक्रमेणानुकेशान्धमयति यत्क्षुरेणमज्जपतासुपेशसाव। वावपतिकेशांछिंधिशिरोमास्यायुःप्रमोषीः इतिमंत्रेण ततस्ताभिरेवाद्भिः समस्तं । ॥१८॥ शिरःप्रक्ष्याल्य अक्षण्वन्परिवपइतिनापितायसुरंप्रयच्छती अथनापितःशिखांधू
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