Book Title: Dashkarm Paddhati
Author(s): Hariprasad Bhagirath
Publisher: Hariprasad Bhagirath
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
द०क०
वाय उदकेनेत्यदित केशान्वपइति मंत्रेणाभिषिच्यतक्रमिश्रितोदकेनवनीताद्यन्यतम पिंडंतूष्णींप्रक्षिप्य दक्षिणपश्चिमोत्तरक्रमेणपूर्वदिशाबद्धकुमारकेश जूटिकात्रये ॥१७॥ दक्षिणजूटिकां सवित्राप्रसूतादेव्याआपउंदंतुते तनुदीर्घायुत्वायवर्चसे इतिमंत्र पठित्वात नैवमिश्रितवारिणाप्रक्षाल्य ततोदक्षिणभागस्थित जूटिकाभागत्रयं कुर्या त् तत्र एकै कांजूटिकांप्रतिकुशपत्रत्रयसंयोजनं कुर्यात् शल्लकीकंटकेन तूष्णविवर रुत्वा भागत्रयं कुर्यात् ततः सप्तविंशतिकुशपत्रतः पत्रत्रयमानीयतत्केशमूलसल नाग्रजू टिकाप्रथमभागमध्यांतरितंकुयात् ॐ ओषधे त्रायस्वधितेमैन हि ँसीः शि बोनामासिस्वधितिस्तेपितानमस्तेअस्तुमामाहि सीः इति मंत्रेण लोह सुरंगृहीत्वाॐॐॐ निवर्तयाम्यायुषेन्नाद्यायप्रजननायरायस्पोषायसुप्रजास्त्वाय सुवीर्याय इतिमंत्रेण
For Private and Personal Use Only
प३०
॥१७॥

Page Navigation
1 ... 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122