Book Title: Dashkarm Paddhati
Author(s): Hariprasad Bhagirath
Publisher: Hariprasad Bhagirath

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Page 63
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra द०क० 113 011 www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कारयित्वा समिधाग्निंदुवस्यतघृतैर्बोधयतातिथिम् आस्मिन्हव्याजुहोतन सुस मिद्धायशोचिषे इतिकंडिकांतरंवाफक्किकांवापाठयेत् ततः सप्रणवंस्वस्तिवाचयित्वा उत्थायफलपुष्पसमन्वितब्रह्म चारिदक्षिणकरस्पृष्टेन घृतपूर्णेन पूर्णाहुतिंदद्यात् मू र्द्धानंदिवोअरतिंपक्षिव्यावैश्वानरमृतआजातमग्निं कवि सम्राजमतिथिंजनाना मासन्नापात्रं जनयंतदेवाः इतिपूर्णाहुतिःतत उपविश्यस्रुवेण भस्मानीयदक्षिणानामि कागृहीतभस्मनात्र्यायुषंजमदग्नरितिललाटेॐ कश्यपस्य त्र्यायुषमितिग्रीवायांॐ यद्देवेषुत्र्यायुषमितिदक्षिणबाहु मूले तन्नो अस्तुध्यायुषमितित्हृदि अनेनैवक्रमेणत्र ह्मचारिललाटादावपितत्रतत्ते इतिविशेषः॥ इतिवेदारंभः ॥ अथसमावर्तनं ॥ तत्रशुभे दिने प्रह्वीभूय आचार्यस्नास्यामीतिकुमार आचार्य भाषते तत्रस्त्राहीत्याचार्यः ततोब For Private and Personal Use Only पद्म० ॥३०॥

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