Book Title: Dashkarm Paddhati
Author(s): Hariprasad Bhagirath
Publisher: Hariprasad Bhagirath

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Page 38
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir जूटिकासंलग्नकुर्यात् ततःकुशपत्रत्रयसहितांजूटिकांछिनत्ति ॐयेनावपत्सविता || सुरेणसोमस्यराज्ञोवरुणस्य विद्वान् तेनब्रह्माणोवपतेदमस्यायुष्यंजरदष्टियथासत् । ॥ इतिमंत्रणपश्चिमजूटिकाछेदनकुर्यात् ततस्तान्लूनकुशपत्रत्रयसहितान् अनडु || Mदोमयपिंडोपरिउत्तरस्यांनिदध्यात् अत्रैवपूर्वप्रक्षालितपरभागद्वयेकुशपत्रत्रितयाँ | निधानादिच्छेदवर्जसर्वपूर्ववदेवच्छेदनंतूष्णीं नतःपश्चिमजूटिकायांपूर्ववत्तेनैवमं ।। त्रणप्रक्षालनंतूष्णींशल्लकीकंटकेनभागत्रयकरणकेशमूलसंलग्नानकशांतरितमध्य | । कुशपत्रत्रयधारणक्षरग्रहणतत्संयोजनानितत्तन्मंत्रेणैव तत्रप्रथमजूटिकाछेदनेम व्यायुषंजमदग्नेःकश्यपस्यन्यायुषं यद्देवेषुत्र्यायुषंतन्नोअस्तुत्र्यायुषम् इतिमंत्र । गछित्त्वाततः पूर्ववद्गोमयपिंडोपरिनिदध्यात् तत्रावशिष्टभागोकुशपत्रत्रयंकेशां For Private and Personal Use Only

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