Book Title: Dashkarm Paddhati
Author(s): Hariprasad Bhagirath
Publisher: Hariprasad Bhagirath

View full book text
Previous | Next

Page 33
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra द०क० ॥१५॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir | शल्लकीकंटकं साग्रसप्तविंशतिकुशपात्राणि लोहक्षुरःनापितः वृषभगोमयपिंडः अन्य दप्याचारान्नलिनीदलादि ततः पवित्रच्छेदनकुशाः पवित्रे छिवास पवित्र करेणप्र णीतोदकंत्रिःप्रोक्षणीपात्रे निधाय द्वाभ्यामनामि कांगुष्ठाभ्यामुत्तराग्रेपवित्रे गृहीत्वा त्रिरुत्पवनं ततः प्रोक्षणीपात्रंवामहस्ते कृत्वाऽनामिकांगुष्ठगृहीतपवित्राभ्यांत्रोक्षणी जलं त्रिरुत्क्षिप्य प्रणीतोदकेनप्रोक्षणीपात्र मभ्युक्ष्यप्रोक्षणीज लेनासादितवस्तून्य भि षिच्याग्निप्रणीतयोर्मध्ये प्रोक्षणीपात्रंनिदध्यात् आज्यस्थाल्यामाज्यंकृत्वाधिश्रित्य ज्वलत्तृणादिकमादायाज्यस्योपरिप्रदक्षिणंभ्रामयित्वावह्नौतत्क्षिपेत् ततस्त्रिः सुवः प्रतपनं संमार्जनकुशानामग्रैरंतर तोमूलैर्बात्यतःस्रुवं संमृज्यप्रणीतोदकेनाभ्युक्ष्य पू सर्ववत्रिः प्रताप्यदक्षिणतोनिदध्यात् ततः अग्नितः प्रदक्षिणक्रमेणाज्यमवतार्याग्रतो For Private and Personal Use Only प३० ॥१५॥

Loading...

Page Navigation
1 ... 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122