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वादिदेव सूरि-- इनका असली नाम देवसूरि है । वादी यह विशेषण उनकी शास्त्रीय प्रगल्भता के कारण है । ये महात्मा मुनिचंद्र सूरि के पट्टधर थे । इनका जन्म वि० सं० ११४३ में हुआ ११५२ में जैनमत की दीक्षा । ११७४ में आचार्य पद और १२२६ में इनका स्वर्गवास हुआ। वि० सं० ११८१ में सिद्धराज की सभा में दिगम्बर विद्वान् कुमुदचंद्र को इन्होंने शास्त्रार्थ में पराजित किया। जैन परम्परा से श्रवण करने में आता है कि इन्होंने स्याद्वाद रत्नाकर नाम का ८४ हजार श्लोक प्रमाण का एक बड़ा ही उच्च कोटि का दार्शनिक ग्रन्थ लिखा है। परन्तु दुर्भाग्यवश से वह आज उपलब्ध नहीं होता ।
रत्नप्रभसूरि-- ये प्रभाविक जैन विद्वान् वादि देवसूरि के शिष्य हैं। इनका समय विक्रम की तेरहवीं शताब्दी का प्रारम्भ माना गया है। रत्नाकरावतारिका जैसा उत्तम दार्शनिक ग्रन्थ इन्हीं का निर्माण किया हुआ है इसके सिवाय उपदेश माला की दो घट्टी टीका के निर्माता भी यही माने जाते हैं।
हेम चन्द्राचार्य-- इस महा पुरुष का जन्म विक्रम संवत् ११४५ की कार्तिक सुदि पूर्णिमा को हुआ था। ११५४ में चंद्रगच्छोय श्री देवचंद्र
* देखो जैन प्रन्थावलि पृ० ८० । जैन । * देखो जैन ग्रन्थावलि पृ० ७८ | जैन ।
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