Book Title: Darshan aur Anekantavada
Author(s): Hansraj Sharma
Publisher: Atmanand Jain Sabha

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Page 200
________________ ( १५१ ) [ ईश्वर का कर्तृत्व अकर्तृत्व सनातन धर्म के सुप्रसिद्ध विद्वान पंडित भीमसेन शर्मा लिखते हैं-ईश्वर के कर्तृत्ववाद में सनातन धर्म का सिद्धान्त यह है निरिच्छे संस्थिते रले यथा लोहः प्रवर्तते । सत्तामात्रेण देवेन तथा चायं जगज्जनः ॥१॥ अत अात्मनि कर्तृत्व मकर्तृत्वं च संस्थितम् । निरिच्छत्वादकती सौ कर्ता सनिधिमानतः ॥२॥ भावार्थ-जैसे इच्छारहित धरे हुए चुम्बक के समीप होते ही लोहे में क्रिया होती है लोहगत क्रिया का हेतु-कर्ता चुम्बक है, वैसे ही ईश्वर के विद्यमान होने मात्र से प्रकृति में सृष्टि रचनादि की सब चेष्टा हुआ करती है। दृष्टान्त दान्ति में भेद इतना ही है कि चुम्बक जड़ है और ईश्वर सर्वज्ञ चेतन है निरिच्छता और प्रयोजकता दोनों में एकसी है । इस दृष्टान्त से परमेश्वर में कर्तृत्व, अकर्तृत्व दोनों ही माने जाते हैं। निरिच्छ होने से परमेश्वर अकर्ता और उसके समीप हुए बिना प्रकृति कुछ नहीं कर सकती इस कारण ईश्वर कर्ता है"प्रदीप भावा भावयोर्दर्शनस्य तथा भावादर्शन हेतुःपूदीप इतिन्यायः" [ब्राह्मण सर्वस्व भा० ८ सं० १ ० २२ ] लेख सर्वथा स्पष्ट है किसी प्रकार के टीका टिप्पन की आवश्यकता नहीं रखता पाठकों से यह कहने की कोई आवश्यकता Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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