Book Title: Darshan aur Anekantavada
Author(s): Hansraj Sharma
Publisher: Atmanand Jain Sabha

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Page 218
________________ ( १६९ ) करने का प्रयत्न किया है (?) उस पर यदि मतान्तरीय विद्वान् सम्यकतया ध्यान नदें तो इसमें जैनदर्शन अथवा जैन विद्वानोंका क्या दोष ? "नायंस्थाणो रपराधो यदेनमन्धोनपश्यति"[निरुक्त यास्काचार्य] स्थाणु का यह कोई अपराध नहीं जो कि नेत्रहीन उसको नहीं देखता । अतः शंकराचार्य प्रभृति विद्वानों के-"जो पदार्थ सत् रूप है वह असत् नहीं हो सकता अथवा पदार्थ में जिस रूप से सत्व है उस रूप से असत्व उसमें नहीं रह सकता" इस कथन के साथ जैन दर्शन को कोई विरोध नहीं है, जैन दर्शन भी तो पदार्थ में जिस रूप से सत्व है उस रूप से असत्व का अंगीकार नहीं करता अर्थात इस विषय में इन सब का मन्तव्य एकसा ही है, इस दशा में प्रतिपक्षी विद्वानों के द्वारा अनेकान्तवाद पर उक्त रूप से जो आक्षेप किया गया है और जिसके आधार पर वे अनेकान्तवाद के सिद्धान्त को मिथ्या या उन्मत्त प्रलाप बतलाते हैं वह कुछ मूल्यवान् प्रतीत नहीं होता । जो बात जैन दर्शन को अभीष्ट ही नहीं उसको जबरदस्ती उसके गले में मढ़ना और (?) क-"नखलु यदेव सत्वं तदेवासत्वं भवितु मर्हति विधि प्रतिषेध रूपतया विरुद्ध धर्माध्यामेनानयो क्यायोगात"....... "नहि वयं येनैव प्रकारेगा सत्वं, तेनैवासस्वं, येनैवासत्व, तेनैवसत्वमभ्युपेमः किन्तु" इत्यादि। (स्याद्वाद मंजरी पृ० १०८) * यदि यैनव प्रकारेण सत्र, तैनेवास येनैवचासत्वं तेनैव सत्व मभ्यु पेयेत तदा स्याद्विरोधः इत्यादि । (रत्नाकरावतारिका ५ परि १०८६) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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