Book Title: Darshan aur Anekantavada
Author(s): Hansraj Sharma
Publisher: Atmanand Jain Sabha

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Page 234
________________ ( 7 ) पृष्ठ पंक्ति १२६ १४ एतैनैवानुमानेन सप्ताभङ्गीन्याय स्यानास्ति त्यादि ममनाने शुद्ध एतेनैवानुमानेन सप्तभङ्गीन्याय स्यानास्तीत्यादि मनमाने मंतग्य केचित् नंतव्य केचत् केश्चत् केचित् १६३ १६५ अपने १०५ १०७७ आपने ऐतेनैकानेक एतेनैकानेक अनुभद अनुभव क्षेत्रकाल भाव रूए से क्षेत्रकाल भाव रूप से विशेष विरोध भावाभात्मकत्वादस्तुनो भावाभावात्मकत्वादस्तुनो प्रवृतेः प्रवृत्तेः १०० १०० नोट:-प्रन्थ के प्रारम्भिक पृष्ठों का “शुद्धाशुद्ध पत्र" . पृष्ठ पंक्ति भशुद्ध शुद्ध ११ १५ विवृति २५ १५ निवृति १९६२ २५००० ततः तसः कृत Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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