Book Title: Darshan aur Anekantavada
Author(s): Hansraj Sharma
Publisher: Atmanand Jain Sabha

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Page 213
________________ ( १६४ ) रहेगा । यथा शशविषाण-ससले के सींग-और प्रपंच इन दोनों (सत्-असत्-) से विलक्षण हैं अतः एकान्तवाद ही युक्तियुक्त है अनेकान्तवाद नहीं (गोविन्दाचार्य) "जो पदार्थ ' है ' उसको 'है' और 'नहीं' यह किस प्रकार कहा जाय" (भास्कराचार्य) उपर्युक्त भाष्य और उसकी टीकाओं के लेख से दो बातें साबित हुई। (१) सत् असत् का और असत् सत् का अत्यन्त विरोधी है। (२) जिसका कभी किसी रूप में भी वाध न हो वह सत् [ ब्रह्म ] और जिसकी किसी दशा में भी कभी प्रतीति न हो बह असत् है [शशश्टंग] तथा प्रपंच का वाध भी होता है [ब्रह्म साक्षात् कार के उत्तरकाल में ] और प्रत्यक्ष रूप से प्रतीति भी होती है अतः वह न केवल सत् और न असत् किन्तु दोनों से विलक्षण है । इससे सिद्ध हुआ कि जो वस्तुतः सत है वह असत् कभी नहीं हो सकता [ब्रह्म और जो सर्वथा असत् है वह सत् कभी नहीं बन सकता [शशश्टंग] तथा प्रपंच जगत न सर्वथा सत् है और नाहीअसत्, [इससे साफ सिद्ध - - "यदस्तित् सर्वत्र सर्वदास्त्येव यथा ब्रह्मात्मा................ यन्नास्ति तनास्त्येव, यथा शशविषाणादि । प्रपञ्चस्तुभय विलक्षण एवेत्येकान्त चाद एव युक्तो नानेकान्तवादः [रत्नप्रभा] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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