Book Title: Darshan aur Anekantavada
Author(s): Hansraj Sharma
Publisher: Atmanand Jain Sabha

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Page 210
________________ ( १६१ ) सब से प्रथम खंडन करने वाला यदि कोई विद्वान् हुआ है तो वह भास्कराचार्य है इसलिये ये दोनों ही विद्वान् सिद्धान्त के विषय में एक दूसरे के विचारों से सहमत नहीं किंतु एक दूसरे का प्रतिपक्षी है । भास्कराचार्य ने शंकर स्वामी के अनिर्वचनीय वाद के सिद्धान्त का बड़ी ही प्रौढ़ता से प्रतिवाद किया है सिद्धान्त के विषय में इनका इस कदर विचार भेद होने पर भी जैन दर्शन के विषय में।ये दोनों विद्वान् एक जैसे ही विचार रखते हैं अर्थात् जैन दर्शन के अनेकान्तवाद को दोनों ने एक ही रूप में समझा और एक ही शैली से उसका खण्डन किया । अन्तर सिर्फ इतना ही है कि शंकर स्वामी का लेख कुछ विशद और भास्कराचार्य ने कुछ संक्षेप में लिखा है। मगर प्रतिवाद की शैली दोनों की समान है। इनके अतिरिक्त और भी जितने प्राचीन तथा अर्वाचीन विद्वानों ने ब्रह्मसूत्र पर भाष्य लिखे हैं उनमें भी प्रायः इन्हीं दोनों .. चिद्वानों की शैली का अनुसरण किया है। इसलिये इन दोनों में से किसी एक विद्वान (शंकर स्वामी अथवा भास्कराचार्य) के लेख पर विचार कर लेने से सब के लेख का विचार हो जाता है। अतः इन्हीं दोनों के लेख का यहाँ पर विचार करते हैं। [दृष्टि भेद ] • अन्य विद्वान् चाहे कुछ भी कहें परन्तु हमतो यह कहने का साहस नहीं कर सकते कि शंकराचार्य प्रभृति विद्वानों ने * देखो इनका २।१।१४ सूत्र का भाष्य । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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